रांची। झारखंड में आस्था व विश्वास के पवित्र स्थल भरे पड़े हैं। बात साहबगंज की हो अथवा इसी जिले में अवस्थित बरहड़वा की हो। चाहे राजधानी रांची के निकट रामगढ़ का हो। मंदिरों में प्रसाद तो लोग चढ़ाते ही हैं, लेकिन यहां की एक और मान्यता है। वह है पेड़ों में आस्था के नाम पर पत्थर बांधना। मान्यता है कि ऐसा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।
साहिबगंज: यहां आस्था और विश्वास का पवित्र स्थल है रक्सी माता का स्थान। यहां हर मंगलवार और शनिवार को पूजा करने की खास मान्यता है। किंवदंती है कि लोग अपनी मनोकामना के लिए यहां पीपल के पेड़ में लाल कपड़े से लपेट कर ईंट या पत्थर बांधते हैं। लोगों को उम्मीद रहती है कि मां की नजर पेड़ पर बांधे गए गई ईंट या पत्थर पर कभी तो जरूर पड़ेगी। इसके बाद मां उसकी मनोकामना पूरी करेंगी। भागलपुर-बरहड़वा रेलखंड पर गुजरने वाली पैसेंजर ट्रेनें मंगलवार व शनिवार को रुकती हैं, ताकि लोग आ-जा सके। माता के दरबार तक पहुंचने के लिए अब तो मिर्जाचौकी व साहिबगंज से भी कई यात्री वाहन भी चलने लगे हैं।
रामगढ़: रांची के निकट रामगढ़ जिले में मां छिन्नमस्तिका का मंदिर है। यह मंदिर जिले के रजरप्पा शहर में स्थित है। भैरवी और दामोदर नदी के संगम पर अवस्थित इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां पेड़ पर पत्थर अर्पित करने से मां प्रसन्न हो जाती हैं। वे अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं। पत्थरों वाली माता के नाम से मशहूर ‘मां छिन्नमस्तिका’ की इस मंदिर में अनोखी मूर्ति हैं। बताया जाता है कि यहां फोटोग्राफी पर पूरी तरह बैन लगा हुआ है। पत्थर वाला पेड़ मंदिर में ही मौजूद है। यहां अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए पत्थर बांधने की परंपरा है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। यहां देवी की शक्ति और भक्तों की भक्ति का संगम देखने को मिलता है। मां के इस मंदिर में भोलेनाथ की मूर्ति भी है। यहां यह भी मान्यता है कि पहले यहां भक्त शिव की पूजा कर माता के दर्शन करते हैं। फिर पेड़ के पास पहुंचकर यहां पत्थर बांधते हैं और मनोकामना की वरदान मांगते हैं।
बड़हरवा: झारखंड के साहेबगंज जिले में बड़हरवा है। इस स्टेशन से महज तीन से चार किलोमीटर पहाड़ पर ऐतिहासिक मां विंध्यवासिनी का मंदिर है। बताया जाता है कि भगवान शिव जब सती के शव को लेकर तांडव किए थे तो इस स्थल पर उनके शरीर का कुछ रक्त गिरा था। यहां रामनवमी में काफी भीड़ लगती है जो 10 दिनों तक चलती है। इसी मंदिर में पेड़ है, जहां अपनी मनोकामना को लेकर भक्त पत्थर बांधते हैं। मान्यता है कि मनोकामना पूरी होने के बाद वहां बंधे कोई एक पत्थर को भक्त खोल देते हैं। यह पंरपरा सदियों से चली आ रही है।