DELHI (MR) : बॉलीवुड में बहुत पहले एक गाना आया था- ‘खाली की गारंटी दूंगा, भरे हुए की क्या गारंटी’… उस समय भी नकली-मिलावटी का जमाना था। लोग परेशान थे। लेकिन, बाद में खाद्य सामग्रियों की देखादेखी कोर्स की किताबों में आ गयी। अब नकलचियों और पायरेसी ने हिंदी लेखकों को निशाने पर लिया है। इसके शिकार अब देश के सबसे लोकप्रिय हिंदी लेखक नीलोत्पल मृणाल हो गए हैं।
नीलोत्पल अपनी पहली ही किताब ‘डार्क हॉर्स’ से लोगों के दिलोदिमाग पर छा गए। इसके बाद तो उनकी दूसरी किताब ‘औघड़’ ने तहलका मचा दिया। और हाल में आयी ‘यार जादूगर’ ने तो घर-घर में जगह बना ली। लेकिन नकलचियों की पायरेसी बुक ने इन्हें बहुत बड़ा झटका दिया है। उन्होंने अपने इस दर्द को सोशल मीडिया पर साझा किया है।
देश के ख्यातिलब्ध हिंदी लेखक नीलोत्पल मृणाल ने अपने। लंबे फेसबुक पोस्ट में लिखा है- ‘नकली किताब तक आ गई। शुरू-शुरू जब लोगों ने डार्क हॉर्स और औघड़ के बारे में बताया कि इसकी नकली कॉपी बिक रही, तो यकीन नहीं कर पाया था। टेलीग्राम और pdf वगैरह की पायरेसी तो जान ही रहा था, पर किताब? ये वाला झटका बड़ा था, पर दोस्तों-शुभचिंतकों ने इसे किताब की लोकप्रियता का पक्ष बताया तो इसी सुख को महसूस कर आर्थिक हानि बर्दाश्त करता रहा।’
‘तब से डार्क हॉर्स और औघड़ की नकली किताब बाजार में बिकता देख आज तक बस छाती पकड़ के मन मसोस कर रह जाता हूं। इसके हुए मेरे आर्थिक नुकसान को सामान्य तौर पर “पाठकों के अभाव की थ्योरी को ही अंतिम सत्य मान चुका हिंदी साहित्य जगत” शायद ही समझ पायेगा और वास्तविक आकलन भी शायद ही कर पायेगा, इसलिये उसकी चर्चा छोड़ रहा।’
‘अभी एक असहनीय झटका ये लगा है कि मेरे नए आये उपन्यास “यार जादूगर ” की भी नकली कॉपी बाजार में फैल चुकी है। इस झटके ने आर्थिक रुप से बड़ा नुकसान दे तोड़ दिया है। मैंने कभी नहीं कल्पना की थी कि किताबों की पायरेसी की दुनिया मेरे जैसे हिंदी के लेखकों को भी निशाने पर लेकर आर्थिक रूप से तहस-नहस कर देगी। सामान्य तौर अँगरेजी के बेस्ट सेलर किताबों को हम सड़क से लेकर लालबत्ती चौराहे और दुकानों पर बिकता हुआ देखते आये हैं, पर हिंदी की नई पीढ़ी के लेखक इसका शिकार होंगे, ये नहीं सोचा था।’
महज महीने भर पहले आई किताब “यार जादूगर” की नकली कॉपी का आना, लोकप्रियता को भले दर्शा ले, लेकिन अंतिम रूप से वह आर्थिक रुप से कमर तोड़ देने वाला है। मैं जानता हूं कि इस कदर नकली किताबों का त्वरित रूप से छपना और बिकना किताब की तो सफलता है। ये आज के परिदृश्य में नई कलम को मिली दुर्लभ लोकप्रियता है। ये तो आप पाठकों का बड़प्पन और प्यार है कि आपने मेरे जैसे साधारण कलम को इतनी हिम्मत दी और इस कदर लोकप्रिय बनाया। अब किताबों की बिक्री की बाधा से आपने मुझ साधारण को तो पिछ्ले वर्षों पहले ही मुक्त कर दिया।’
‘आपने किताबों से मुझे आजीविका दी, कलम से आजीविका दी, लेकिन अब पायरेसी गिरोह के कारण उसी कलम के हिस्से की रोटी छिनतई का शिकार हो रही इससे। हमारे प्रकाशक ने इस बार तमाम पिछ्ली संख्या को लाँघते रिकॉर्ड संख्या में पहला संस्करण छापा। अभी हमारी किताब वैध वितरण प्रणाली द्वारा प्रामाणिक डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी द्वारा हर शहर पहुँच ही रही थी कि वहां पहले से नकली किताब बिक भी रही। अब वहां से नकली किताबों की तस्वीरें भी आने लगी हैं। देख के दंग हूं। अभी इंदौर में था। वहां एक पाठक नकली किताब ले के आये। बताया कि खजूरी बाजार से खरीदा। इसी तरह बताऊं कि अभी यार जादूगर के बारे में दिल्ली, इंदौर ,जयपुर, बनारस,bइलाहबाद (प्रयागराज पुस्तक मेला) जैसे शहरों से नकली किताब की तस्वीर तो आ गई है। भगवान जाने और पायरेसी करने वाले ही जानें कि किताब कहाँ-कहाँ पहुंचा रहे।’
‘मुझे कई शुभचिंतक सुझाव देते हैं कि इनके खिलाफ कोई कार्यवाही देखिए, लेकिन सच यही है कि बतौर लेखक इस मामले में असहाय हूँ, प्रकाशक भी असहाय हैं। इसमें आप पाठक ही जब दुकानों में कोई नकली किताब देखें तो कम से कम बेचने वालों को एक बार बोलें जरूर कि वो गलत कर रहा। इसका कोई प्रभाव होगा नहीं, लेकिन बार-बार कहने से शायद ये माहौल बने कि पाठक नकली किताबों के खिलाफ़ हैं। हमने नकली किताबों की पहुँच को रोकने की कोशिश करी है, पर रोक नहीं पा रहे। इसमें क्या कानूनी सहायता लें, जो वास्तव में प्रभावी हो नहीं जानता। हमें ये भी नहीं पता कि ये रुकेगा कैसे? और तब अंत में यही सोच के खुद को समझा लेते हैं- चलो किताब पहुंच तो रही न लाखों में।’