गोपालगंज उपचुनाव : बीजेपी का जलवा बरकरार रहेगा या आरजेडी का कास्ट कार्ड हिट करेगा ?

मोकामा के साथ ही गोपालगंज में भी उपचुनाव होना है। एक तरफ बीजेपी तो दूसरी तरफ महागठबंधन का जलवा है। बिहार की सियासत में इसे कोई लिटमस टेस्ट मान रहा है तो कोई इसे 2024 का सेमीफाइनल कह रहा है। आखिर गोपालगंज में क्या होगा ? दो दशक से चला आ रहा बीजेपी का जादू टूटेगा या आरजेडी दो दशक के बाद अपना परचम लहराएगा ? वैश्य वोटर अपनी कहानी दोहराएगा अथवा इस बार गोपालगंज नया रिकॉर्ड बनाएगा। लेकिन, सवाल तो वही रहेगा कि आखिर इस बार गोपालगंज क्या करेगा ?

रअसल, बिहार के मोकामा की तरह गोपालगंज में भी उपचुनाव होना है। जिस तरह मोकामा में दो दशक से अनंत सिंह का ​कब्जा है, उसी तरह गोपालगंज में भी दो दशक से बीजेपी का कब्जा बरकरार रहा है। गोपालगंज में 2005 से ही बीजेपी जीतती आ रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के टिकट पर सुभाष सिंह चौथी बार विधायक बने थे। इस बार तो वे एनडीए सरकार में मंत्री भी बने थे, लेकिन महागठबंधन की सरकार आ जाने के बाद उन्हें मंत्री पद से हटना पड़ा था। इसी साल अगस्त के पहले पखवारे में बिहार में नयी सरकार का गठन हुआ था और दूसरे पखवारे में सुभाष सिंह का निधन हो गया था वे लंबे समय से ​बीमार चल रहे थें।इसके बाद ही वहां उपचुनाव कराए जा रहे हैं।

गोपालगंज से इस बार बीजेपी ने सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी को टिकट दिया है। बीजेपी को उम्मीद है कि सुभाष के निधन के बाद उनकी पत्नी को वहां के वोटरों का सहानुभूति वोट मिलेगा। दरअसल, गोपालगंज में बीजेपी को जिताने में सुभाष सिंह की अहम भूमिका रही है। वे 2005 से ही लगातार विधायक बनते आ रहे थे। बीजेपी ने भी उन पर हर बार भरोसा किया और वे पार्टी की कसौटी पर हमेशा खरा उतरे थे। लोग उनके पर्सनल व्यवहार को बीजेपी की जीत में बड़ा कारण मानते रहे हैं। वहां के लोगों का कहना है कि सुभाष सिंह का स्थानीय लोगों के साथ व्यवहार काफी मृदुल के साथ कुशल भी था। वे अपने क्षेत्र के लोगों को काफी सम्मान देते थे। साथ ही उनके दफ्तर या आवास पर पहुंचने वाले लोगों को वे निराश नहीं करते थे। ऐसे में जातीय समीकरण के साथ ही उन्हें उनके पर्सनल व्यवहार के कारण भी वोट मिलते थे और इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिल रहा था। इसके साथ ही नीतीश कैबिनेट में मंत्री बनने के बाद उनके कद में और अधिक इजाफा हुआ था। यही वजह रही कि, जब उनका निधन हुआ, तो क्षेत्र के लोग काफी दुखी हो हुए थे।

पॉलिटिकल पंडितों की मानें तो बीजेपी ने इसी को देखते हुए उपचुनाव में इस बार सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी को टिकट दिया है। उन्हें सहानुभूति के नाम पर समर्थक कितना सपोर्ट करते हैं, यह तो आने वाला समय बताएगा, किंतु महागठबंधन की ओर से आरजेडी ने जो प्रयोग किया है, वह बेशक बीजेपी की नींद उड़ा दी है। दरअसल, आरजेडी ने इस बार ‘माय’ समीकरण को दरकिनार कर वैश्य समुदाय से आने वाले मोहन गुप्ता को टिकट दिया है। ऐसा ही प्रयोग आरजेडी ने पिछले साल हुए तारापुर उपचुनाव में किया था। यहां पर पहले यह जानते हैं कि तारापुर में आरजेडी का यह प्रयोग कैसा रहा ? तारापुर उपचुनाव में आरजेडी ने वैश्य समाज से आने वाले अरुण कुमार को टिकट दिया था, जबकि इसके पहले वहां भी आरजेडी यादव उम्मीदवार पर ही भरोसा करती थी। हालांकि, एक बार वहां से जमुई के हीरा सिंह को भी टिकट गया था। लेकिन, 2020 में पार्टी ने जयप्रकाश नारायण यादव को भी इग्नोर कर दिया। तारापुर में वैश्य समाज को टिकट देने का आरजेडी को जबर्दस्त फायदा मिला था। वहां आरजेडी उम्मीदवार अरुण कुमार अंतिम राउंड में जाकर हारे थे।

पॉलिटिकल पंडितों की मानें तो तारापुर में आरजेडी को अपने ही लोगों से भीतरघात का सामना करना पड़ा था। साथ ही तब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू एनडीए में शामिल थी। इसके बाद भी महज 4 हजार वोटों से हार हुई थी। वैश्य वोट को बांटने की रणनीति वहां सफल हुई थी और इसी रणनीति तथा सोच के तहत आरजेडी ने गोपालगंज उपचुनाव में भी वैश्य समाज से आने वाले मोहन गुप्ता को टिकट दिया है। गोपालगंज में वैश्य वोटरों की अच्छी आबादी है और बीजेपी को जिताने में अहम भूमिका रहती है। यह भी सच है कि वैश्य समाज को बीजेपी का आधार वोट माना जाता है। कहा जाता है कि वैश्य वोट किसी भी उम्मीदवार की जीत में निर्णायक वोटर साबित होते हैं और यह 70 के दशक से देखा जा रहा है। यही बीजेपी के लिए प्लस पॉइंट है। ये बनिया वोट 2005 से ही लगातार बीजेपी उम्मीदवार सुभाष सिंह को मिलते आ रहे हैं।

लेकिन, अब 2022 आ गया है। इस बीच कई बदलाव हुए हैं। नेता और पब्लिक के मूड एंड मोमेंट दोनों में बदलाव हुए हैं। दो दशक से बीजेपी को देखते—देखते लोग थोड़ा एंटीकम्बेंसी के मूड में आ गए हैं। दूसरा, बड़ा कारण यह है कि गोपालगंज के इतिहास में अब तक दो बार ही वैश्य समाज के उम्मीदवारों को टिकट मिला है और दोनों ही बार वैश्य वोटरों ने अपनी जाति के उम्मीदवार को खुलकर साथ दिया था। दोनों ही बार गोपालगंज से वैश्य विधायक चुने गए और बीजेपी मात खा गयी। दरअसल, यहां पर पहली बार वैश्य समाज की 1977 में राधिका देवी चुनाव लड़ी थीं। तब उन्हें महज 16791 वोट मिले थे। इसके बाद भी वे यहां से जीतकर विधायक बनीं। दूसरी बार 1995 में जनता दल ने वैश्य समाज से आने वाले रामावतार प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया। रामावतार प्रसाद को 50 हजार से अधिक वोट मिले थे। इस तरह रामावतार प्रसाद भी चुनाव जीत गए।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो तेजस्वी यादव की निगाहें इसी वोट बैंक पर हैं और इसी को देखते हुए उन्होंने मोहन गुप्ता पर भरोसा भी किया है। पॉलिटिकल पंडित यह भी कहते हैं कि रामावतार प्रसाद के बाद गोपालगंज मेें वैश्य समाज को किसी दल ने टिकट नहीं दिया। यहां तक कि बीजेपी ने तो आज तक गोपालगंज में वैश्य समाज को टिकट नहीं दिया है। ऐसे में आरजेडी और तेजस्वी यादव ने वैश्य उम्मीदवार उतारकर बड़ा दांव चला है और यहीं दांव बीजेपी को मुसीबत में डाल सकता है। आरजेडी को उम्मीद है कि तारापुर उपचुनाव का प्रयोग गोपालगंज में सफल हो सकता है, क्योंकि इस बार उन्हें नीतीश कुमार का साथ मिल रहा है। ऐसे में उन्हें नीतीश कुमार के नाम पर उनके स्वजातीय के अलावा पचफोड़ना तथा चुप्पा वोट का भी फायदा मिल सकता है। यह सब जानते हैं कि नीतीश कुमार का चुप्पा वोट कौन हैं।

बहरहाल, तेजस्वी यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती यादव वोट बैंक में होने वाली सेंधमारी को रोकना है। दरअसल, इस बार भी साधु यादव मैदान में हैं। प्लस प्वाइंट यही है कि इस बार वे स्वयं नहीं हैं, बल्कि उनकी पत्नी इंदिरा देवी मैदान में हैं। बता दें कि गोपालगंज में साधु यादव अपने आप में बड़ा फैक्टर हैं। वे लालू यादव के सगे साले हैं। इस लिहाज से तेजस्वी के वे मामा हो गए। हालांकि, अब लालू फैमिली से उनका कोई सियासी संबंध नहीं रहा है। लेकिन, यादव वोटरों के कुछ खास मुहल्लों पर उनकी अच्छी पकड़ है। यही वजह है कि 2020 के चुनाव में वे रनर रहे थे। साधु यादव के व्यकितगत संबंध के कारण भी काफी संख्या में यादव वोटर उनके साथ रहते हैं। इसका लाभ उन्हें समय-समय पर मिलते रहता है। इसी बिखराव के चलते 2015 में भी यहां से महागठबंधन के उम्मीदवार हार गए थे, जबकि उस चुनाव में लालू और नीतीश एक साथ थे। 2020 में यह सीट कांग्रेस के खाते में गयी थी। खुद तेजस्वी यादव प्रचार करने गए थे, इसके बाद भी महागठबंधन के उम्मीदवार फेंका गए और नहीं चाहने के बाद भी साधु यादव दूसरे नंबर पर आ गए थे। आंकड़े बताते हैं कि गोपालगंज में RJD का MY समीकरण का वोट मजबूत संख्या में है। यादव वोटर्स की संख्या लगभग 47 हजार है, जबकि मुस्लिम वोटर्स 58 हजार के आसपास हैं। इसके बाद भी इसका लाभ महागठबंधन को नहीं मिला है, वह भी तब, जब गोपालगंज लालू यादव का गृह जिला है। लेकिन, आरजेडी से हमेशा खड़ा होने वाले रियाजुल हक टिकट नहीं मिलने के बाद भी तेजस्वी के साथ आ गए हैं। जिससे इस बार वोटों के ध्रुवीकरण होने की उम्मीद नहीं है और यदि ध्रुवीकरण ऐसा नहीं हुआ तो इसका खामियाजा बीजेपी को ही उठाना पड़ेगा। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि आरजेडी का प्रयोग गोपालगंज में कितना सफल होगा अथवा बीजेपी सहानुभूति वोट का फायदा उठाएगी ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *