Chhath Puja 2022 : देव सूर्य मंदिर में देव माता ने किया था छठ, जानिए इनकी 5 पौराणिक बातें

PATNA (APP MEDIA) : बिहार के औरंगाबाद जिले में देव स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर कई मामलों में विशिष्ठ है। इस मंदिर से जुड़ीं कई मान्यताएं हैं तो कई पौराणिक कहानियां हैं। इसे देश के सबसे बड़े सूर्य मंदिर कोणार्क की टक्कर का माना जाता है। दरवाजे के मामले में तो यह देश का इकलौता मंदिर है। छठ पूजा में यहां इतनी अधिक भीड़ जुटती है, जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते हैं। देव सूर्य मंदिर में छठ करने को लेकर लोग माह भर पहले से जगह और किराये के मकान बुक कर लेते हैं। ऐसे में आज हम आपको बिहार के औरंगाबाद स्थित देव मंदिर की 5 पौराणिक मान्यताओं-कथाओं के बारे में बताएंगे। 

1 पश्चिम दरवाजा वाला इकलौता मंदिर : देव सूर्य मंदिर दरवाजे के मामले में पूरे देश में इकलौता मंदिर है। इस सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूरब दिशा की ओर न होकर पश्चिम दिशा की ओर है। तमाम हिंदू मंदिरों के विपरीत पश्चिम की ओर द्वार वाले इस देव सूर्य मंदिर में श्रद्धालुओं की बड़ी आस्था है। कहा जाता है कि औरंगजेब के समय इस मंदिर को तोड़ने के लिए उनके लोग आये हुए थे। तब गांव के लोग इसके विरोध में जमा हो गए। स्थानीय लोगों ने औरंगजेब से मंदिर न तोड़ने को कहा। तब कहा गया कि यदि देवता का मुख्य द्वार रात भर में पूरब से पश्चिम की ओर हो जाए तो इस मंदिर को नहीं तोड़ा जाएगा। कहते हैं कि अगली सुबह मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर हो गया। रातोंरात मंदिर का दरवाजा बदल गया था। इस मंदिर में परंपरा के अनुसार, हर दिन सुबह चार बजे घंटी बजाकर भगवान को जगाया जाता है। उसके बाद भगवान की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है, फिर ललाट पर चंदन लगाकर नए वस्त्र पहनाएं जाते हैं। 

2 भगवान सूर्य की मां ने की थी तपस्या : देव सूर्य मंदिर की दूसरी सबसे बड़ी पौराणिक मान्यता है कि यहां पर भगवान सूर्य की मां ने तपस्या की थी। दरअसल, असुरों और देवताओं के बीच शुरू से महासंग्राम होता रहा है। एक बार ऐसे ही महासंग्राम में देवता हार गए थे। तब देव माता अदित‍ि ने सूर्य देव से पुत्र प्राप्ति की गुहार लगायी और इसके लिए उन्होंने इस देवारण्य में कड़ी तपस्‍या की। उनकी आराधना से प्रसन्‍न होकर छठी माई ने उन्‍हें सर्वगुण संपन्‍न पुत्र के प्राप्‍त होने का वरदान दिया। इसके बाद सूर्यदेव ने माता अदिति के गर्भ से जन्‍म लेने की बात कही। माता अदिति के गर्भ से जन्‍म लेने के कारण सूर्यदेव का नाम आदित्‍य पड़ गया और आदित्‍य ने ही देव सेना बनाकर असुरों का संहार किया। उसी समय से देव सेना षष्‍ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया। और खास बात कि यह मंदिर देश के प्रसिद्ध तीन सूर्य मंदिरों में से एक है। इसे देवार्क मंदिर भी कहा जाता है, जबकि दो अन्य मंदिरों में उड़ीसा का कोणार्क और वाराणसी का लोलार्क सूर्य मंदिर प्रसिद्ध प्रसिद्ध हैं। 

3 भगवान विश्‍वकर्मा ने खुद किया निर्माण : औरंगाबाद का देव मंदिर बिहार में ही नहीं, देश भर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर के साथ खास पौराणिक कथा यह है कि देव सूर्य मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने खुद ही किया था। बता दें कि भगवान की दुनिया में विश्वकर्मा जी को इंजीनियर माना जाता है और यहां के पौराणिक दस्तावेजों में भी इसका उल्लेख मिलता है कि इसका निर्माण आठवीं और नौवीं सदी के बीच में हुआ है। इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। कार्तिक माह में होने वाले छठ महापर्व की बात हो या फिर चैती छठ की, यहां दोनों ही मौकों पर जबर्दस्त भीड़ जुटती है। लाखों लोग पहुंचते हैं। यहां छठ करने के लिए बिहार ही नहीं, झारखंड, मध्य प्रदेश, उतरप्रदेश समेत कई अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं और चार दिनों तक वहीं ठहरते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त मन से इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 

4 शिल्पकला और वास्तु कोर्णाक मंदिर जैसा : देव सूर्य मंदिर की शिल्पकला भी काफी उत्कृष्ट है और इसकी तुलना देश के सबसे बड़े कोणार्क सूर्य मंदिर से की जाती है। लोग बताते हैं कि इस मंदिर की शिल्‍पकला ही नहीं, बल्कि वास्‍तु कला भी कोणार्क के सूर्य मंदिर जैसी ही है। इस मंदिर में सूर्य देवता की मूर्ति सात अश्वों वाले रथ पर सवार है। इसमें उनके तीनों रूपों उदयाचल, मध्याचल और अस्ताचल के रूप में विद्यमान हैं। यानी सुबह, दोपहर और शाम को दरसाता है।दरअसल, कोर्णाक सूर्य मंदिर का स्वरूप और बनावट अद्भुत शिल्पकला का नमूना है। कोर्णाक मंदिर बहुत बड़े और भव्य रथ के समान है, जिसमें 12 जोड़ी पहिया हैं और रथ को 7 बलशाली घोड़े खीच रहे हैं। देखने पर ऐसा लगता है कि मानों इस रथ पर स्वयं सूर्यदेव विराजमान हैं। मंदिर के 12 चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं और प्रत्येक चक्र, आठ अरों से मिलकर बना है, जो हर एक दिन के आठ पहरों को दरसाता है। वहीं रथ में लगे सात घोड़े सप्ताह के सात दिनों को इंगित करता है और कोणार्क मंदिर जैसी खूबसूरती औरंगाबाद के देव मंदिर में भी है। मान्यता है कि देव मंदिर का उल्लेख सूर्य पुराण में भी मिलता है, इसलिए देव मंदिर की छठ पूजा का विशेष महत्व है। 

5 एक पौराणिक कथा यह भी : देव मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा वैसे राजा की है, जिसके शरीर का कुष्ठ छठ मईया और भगवान सूर्य देव की कृपा से ठीक हो गया। इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा में कहा जाता है कि एक राजा एक बार देव इलाके के जंगल में शिकार खेलने गए थे। वह राजा कुष्ठ बीमारी से पीड़ित था। शिकार खेलने के समय उन्हें प्यास लगी, तो उन्होंने अपने आदेशपाल को लोटा भर पानी लाने को कहा। आदेशपाल पानी की तलाश करते हुए पानी भरे एक गड्ढे के पास पहुंचा। वहां से उसने एक लोटा पानी लेकर राजा को दिया। राजा के हाथ में जहां-जहां पानी का स्पर्श हुआ, वहां का कुष्ठ ठीक हो गया। राजा इसे देख दंग हो गए। बाद में राजा ने उस गड्ढे में जाकर स्नान किया तो उनके पूरे शरीर का कुष्ठ रोग ठीक हो गया। उस रात जब राजा सोए हुए थे, तो उन्हें सपना आया कि जिस गड्ढे में उन्होंने स्नान किया है, उस गड्ढे में तीन मूर्तियां हैं। राजा ने फिर उन मूर्तियों को निकाला और मंदिर बनाकर स्थापित किया। और आज यह देव मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। इसी मंदिर के निकट वही तालाब मौजूद है, जिसे सूर्यकुंड भी कहा जाता है।

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