PATNA (SMR) : दोस्ती तो दोस्ती है। इसकी कोई परिभाषा नहीं होती है। जब दो लोग बिन बात ही एक-दूसरे को समझने लगते हैं, उसी दिन वे दोस्त बन जाते हैं। भले ही बीच में दोनों के बीच कुछ दूरियां आ जाए, लेकिन दुख के दिनों में दुश्मनी की सारी दीवारें ढह जाती हैं। इसे एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साबित कर दिया। वे अपने पुराने मित्र लालू यादव से मिलकर काफी भावुक हो गए। मीडिया के सामने उन्होंने इसे खुले दिल से स्वीकार भी किया। कम बोले, लेकिन महज चंद शब्दों में ही लोगों को अहसास हो गया कि उन दोनों की दोस्ती की जड़ें कितनी गहरी हैं। रिश्ते कितने पुराने हैं और इस रिश्ते की मिठास को केवल महसूस किया जा सकता है। उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। 

दरअसल, आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव गंभीर रूप से बीमार हैं। पिछले तीन दिनों से पटना के एक अस्पताल में एडमिट थे और आज शाम उन्हें बेहतर इलाज के लिए दिल्ली ले जाया गया। उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिए लोग दुआ कर रहे हैं। पूजा पाठ किये जा रहे हैं। दरगाहों पर चादर चढ़ाए जा रहे हैं। फोन पर भी लोग उनका हाल-चाल जान रहे हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी फोन कर लालू यादव के स्वास्थ्य की जानकारी ली। सियासत के धुर विरोधी सुशील कुमार मोदी ने भी ट्वीट कर लालू यादव के जल्दी स्वस्थ होने की कामना की। उद्योग मंत्री शहनवाज हुसैन, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने भी उनसे मुलाकात की। पत्नी राबड़ी देवी समेत दोनों बेटे तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव अस्पताल में मौजूद हैं। 

लेकिन, रिश्तों को कैसे जीया जाता है, कैसे निभाया जाता है। इसमें कितनी संजीदगी होती है। इसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साबित किया। जब नीतीश कुमार को पता चला कि लालू यादव सख्त बीमार हैं तो उन्होंने कल शाम में ही तेजस्वी यादव को फोन कर उनका कुशलक्षेम पूछा। हाल-चाल जाना। एक-एक बिंदु पर उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली। मन नहीं माना तो आज दिन में अपने बीमार बड़े भाई व पुराने मित्र लालू यादव से मिलने नीतीश कुमार अस्पताल पहुंच गए। वहां वे काफी देर तक रुके। उनसे बात करने की कोशिश की। लालू से नीतीश की बात भी हुई। उन्होंने डॉक्टरों से भी जानकारी ली। इस दोस्ती की चर्चा एक बार फिर जोर पकड़ ली है। लोग कहने लगे हैं कि दोस्त हो तो नीतीश कुमार जैसा। भाई हो तो नीतीश कुमार जैसा। वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लालू के साथ वाले अपने कई फोटो को टैग करते हुए लिखा है- ‘राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव जी से पटना स्थित पारस अस्पताल में मुलाकात कर उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली। श्री लालू प्रसाद यादव जी के जल्द स्वस्थ होने की कामना है।’    

दरअसल, लालू और नीतीश। बिहार के ये दिग्गज सितारे हैं। एक समय था, जब दोनों की दोस्ती को शोले फिल्म की ‘जय-वीरू की दोस्ती’ कहा जाता था। दोनों के बीच दांत काटी रोटी वाली दोस्ती थी। जब से दोनों की दोस्ती शुरू हुई थी, तब शोले फिल्म भी नहीं आयी थी। शोले फिल्म तो 1975 में आयी थी। तब लोगों ने ‘जय-वीरू की दोस्ती’ को जाना। लेकिन, इन दोनों की दोस्ती 1974 में ही हो गई थी। उस साल पटना में छात्र आंदोलन शुरू हुआ था और इसका नेतृत्व लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने किया था। इस आंदोलन को जेपी आंदोलन भी कहा जाता है। इसी आंदोलन में दोनों दिग्गज नेता एक-दूसरे के काफी करीब आए और दोस्ती प्रगाढ़ होती चली गयी। उस वक्त नीतीश कुमार महज 24 साल के थे, जबकि लालू यादव की उम्र 27 साल थी। उस समय नीतीश कुमार पटना यूनिवर्सिटी के बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहे थे, वहीं लालू यादव पटना कॉलेज में। नीतीश कुमार समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर से प्रभावित थे तो लालू यादव जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति से मोटिवेट थे। 1974 से शुरू हुई दोस्ती बेरोकटोक 1994 तक चलती रही।  

लालू सीनियर रहे हैं, इसलिए नीतीश कुमार उन्हें आज भी बड़ा भाई कहते हैं। दरअसल, लालू कॉलेज के दिनों में ही छात्र नेता बन गए थे, वे पटना यूनिविर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे। चुनाव जीतने में भी लालू सीनियर थे। वे 1977 में ही सासंद बन गए थे, जबकि नीतीश कुमार तब चुनाव हार गए थे। हालांकि, 1985 में लालू और नीतीश ने एक साथ बिहार विधान सभा चुनाव में बाजी मारी थी। इस तरह दोनों एक साथ विधायक बने, लेकिन खास बात यह है कि व्यक्ति और पॉलिटिशियन के रूप में लालू और नीतीश एक-दूसरे के विपरीत हैं। यह जगजाहिर है कि नीतीश बेहद नाप-तौलकर और सधे अंदाज में बोलते हैं, जबकि लालू यादव जो महसूस करते हैं, वह सबके सामने बोल देते हैं। वे यह नहीं सोचते हैं कि लोग क्या सोचेंगे। 1988 का एक वाकया है। उसी साल कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था। उनकी जगह नेता प्रतिपक्ष बनने की बारी आयी तो लालू यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाने के लिए नीतीश कुमार ने उनके पक्ष में जबर्दस्त लॉबिंग की थी। उन्होंने मोर्चा संभालते हुए तमाम विधायकों को लालू के पक्ष में खड़ा कर दिया था। 

2020 में जब विधानसभा सत्र चल रहा था और एक मामले में नीतीश कुमार खफा हो गए थे। तब नीतीश ने कहा भी था, ‘तुम मेरे भाई समान दोस्त का बेटा हो, उन्हें पता है कि लोकदल का नेता किसने बनाया था।’ पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं, भले ही नीतीश कुमार उस समय काफी गुस्सा दिखा रहे थे, लेकिन उस डांट में भी एक अपनापन दिख रहा था। गार्जियनशिप की झलक मिल रही थी। पॉलिटिकल एक्सपर्ट यह भी कहते हैं, 1990 में नीतीश कुमार जैसा सारथी अगर लालू को नहीं मिलता तो उनके लिए मुख्यमंत्री पद दूर की कौड़ी रहता और 2015 में भी नीतीश कुमार मोर्चा नहीं संभालते तो आज तेजस्वी यादव भी इतनी ऊंचाई पर आसानी से नहीं पहुंचते। 

लेकिन, कहा जाता है कि सत्ता के साथ कई बुराइयां भी नेताओं में घर कर जाती हैं। कुछ ऐसा ही लालू व नीतीश के साथ हुआ। लालू पर कई तरह के आरोप लगे। कई मामलों को लेकर नीतीश कुमार से उनकी दूरियां बढ़ती चली गईं। ट्रांसफर-पोस्टिंग में भ्रष्टाचार के आरोप लगे। इन सब कारणों से नीतीश और लालू के बीच की दोस्ती दरकने लगी। उन दोनों की दोस्ती पहली बार 1994 में टूटी। इसके 10 साल के बाद नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने। लेकिन, यह भी कहा जाता है कि मुसीबत में सच्चा दोस्त ही काम आता है। और बिहार में इन दोनों के बीच ऐसा ही हुआ। 2013 में दोनों के बीच एक बार फिर से दोस्ती परवान चढ़ने लगी। 2013 में नीतीश कुमार और लालू यादव की गलबहियां करती तस्वीरें जब मीडिया में आयीं तो बिहार के सियासी गलियारे में हलचल मच गई। और 2015 में इस दोस्ती ने मोदी लहर को भी ठेंगा दिखा दिया। बिहार में मोदी मैजिक नेस्तनाबूद हो गयी। सोशल मीडिया पर चलने लगा कि लालू यादव का ‘दोस्त’ बिहार का मुख्यमंत्री बन गया और नीतीश के ‘दोस्त’ का बेटा उपमुख्यमंत्री। लालू-नीतीश की दोस्ती की मिसालें दी जाने लगी एक बार फिर कहा जाने लगा, दोनों के बीच ‘जय-वीरू’ की दोस्ती है। 

लेकिन, इस बार यह दोस्ती महज चार साल भी ठीक से नहीं चली। दोनों के बीच खाई खिंच गई। 2017 के मध्य में दोनों ने अलग राह पकड़ ली। नीतीश कुमार सत्ता में बने रहे, लेकिन ‘दोस्त’ का बेटा नेता प्रतिपक्ष बन गया। लालू और नीतीश की अंतिम मुलाकात 2017 में ही एक कार्यक्रम में हुआ था। भले ही दोस्ती टूट गयी थी, लेकिन उसकी जड़ें नहीं उखड़ी थीं। दोनों साथ नहीं हैं, तब भी वे एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। यह तस्वीर इसी साल इफ्तार पार्टी में भी देखने को मिली, जब नीतीश कुमार अचानक राबड़ी आवास पहुंच गए थे। इस तस्वीर ने भी सनसनी मचा दी थी। 

बहरहाल, एक बार फिर नीतीश कुमार ने साबित कर दिया कि दोस्त हो तो उनके जैसा। वे बिना किसी भेदभाव के लालू यादव को देखने के लिए अस्पताल पहुंच गए। सोशल मीडिया पर भी दोनों की दोस्ती की मिसालें दी जा रही हैं।

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