बिहार उपचुनाव विश्लेषण : तारापुर में कैसे बच गयी जदयू की सीट, क्यों धीमी पड़ गयी लालटेन की लौ?

PATNA (SMR) : बिहार विधानसभा उपचुनाव के परिणाम आ चुके हैं और एनडीए (जदयू) ने दोनों सीटों पर जीत दर्ज की है। खासकर, कड़े मुकाबले के बाद तारापुर में मिली जीत से जदयू के नेताओं ने राहत की सांस जरूर ली होगी। क्योंकि, बेतहाशा बढ़ती महंगाई, देशव्यापी बेरोजगारी के बीच लंबे समय से सत्ता में रहे सत्ताधारी दल के सामने सवालों की बौछार थी। इसके साथ-साथ राजद ने महीन सामाजिक समीकरण साधने का भी प्रयास किया था। राजद अपने प्रयास में सफल दिखी भी, पर उस प्रयास को परिणाम में बदल पाने से वे चूक गये। इसके पीछे की वजहें क्या रहीं?

सत्ताधारी जदयू के नेता नीतीश कुमार बस इतना ही कहते रहे कि “पति-पत्नी का शासनकाल कैसा था? काम किया है, काम करेंगे। आप जनता मालिक हैं।” क्या नीतीश जी की इतनी-सी बात से ही जदयू का काम बन गया? या फिर जदयू ने कुछ और किया। पहले आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं। वर्ष 2020 में जहां 54.6 प्रतिशत मतदान हुआ था। वहीं उपचुनाव में मात्र 50.4 प्रतिशत ही मतदान हुआ। जो बदलाव के सूचक को नहीं दर्शाता है।

क्या कहते हैं आंकड़े

जदयू

  • 2020 : 64468 वोट
  • 2021 : 79090 वोट
  • कुल 14622 वोट ज्यादा मिले।

राजद

  • 2020 : 57243 वोट
  • 2021 : 75238 वोट
  • कुल 17995 वोट ज्यादा मिले।

लोजपा (चिराग गुट)

  • 2020 : 11264 वोट
  • 2021 : 5364 वोट
  • कुल 5900 वोट कम मिले।

राजेश मिश्रा 

  • निर्दलीय 2020 : 10466 वोट
  • कांग्रेस 2021 : 3590 वोट
  • कुल 6876 वोट कम मिले

इससे निकाल सकते हैं निष्कर्ष 

  • इन दोनों को इस बार उपचुनाव में कम मिले मतों का योग 12776 होता है। उम्मीद की जा रही है कि इनमें से अधिकांश एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में गये, जिन्होंने वैश्य वोटों के लॉस को मेकअप किया।
  • 2020 में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी से भी उम्मीदवार मैदान में था, जिसे 5110 वोट मिले थे। ये वोट भी जदयू के खाते में ही गये होंगे।
  • हालांकि, जदयू के उम्मीदवार की जाति के दो अन्य उम्मीदवार उपचुनाव में मैदान में थे। उनमें दीपक कुमार को 1431 मत और अंशु कुमारी को 613 मत मिले। जिसका योग 2044 होता है।
  • यहां यह स्पष्ट है कि विधानसभा चुनाव 2020 में लड़ाई जहां बहुकोणीय थी, वहीं उपचुनाव, 2021 में दो दलों के बीच मुख्य लड़ाई में बदल गयी।
  • इस उपचुनाव में राजद के कोर वोटर माने जाने वाले समाज से कोई अन्य उम्मीदवार नहीं था। इसका लाभ राजद उम्मीदवार को जरूर मिला होगा।
  • उपचुनाव में हार-जीत का अंतर इतना कम रहा कि अंत तक लगा कोई भी जीत सकता है।
  • असरगंज, तारापुर तक राजद के अरुण साह 3 से 4 हजार की मार्जिनल बढ़त बनाये रहे, लेकिन टेटिया बम्बर से राजीव सिंह ने मेकअप किया और हवेली खड़गपुर और संग्रामपुर में राजद को पीछे छोड़ दिया।
  • मैंने बार-बार कहा था कि राजद को यदि जीतना है तो असरगंज में ही उन्हें बड़ी बढ़त लेनी होगी, लेकिन वे इसमें सफल न हो सके।
  • इस उपचुनाव में दो बातें राजद के खिलाफ गयी। वैश्य-वैश्य का जाप कुछ ज्यादा ही हो गया, जिसका असर कोईरी, कुर्मी-धानुक, गंगोत्री, बिंद व अन्य अतिपिछड़ी जातियों पर हुआ और उनका वोटिंग पैटर्न जदयू की ओर हो गया। 
  • राजद के लोग अक्सर लोगों को यह कहते जमीन पर दिखे कि 10 टर्म से कोईरी ही विधायक क्यों बनेगा? जबकि शकुनी चौधरी सात में से तीन टर्म राजद के ही विधायक रहे। इस प्रचार ने कोइरियों को ध्रुवीकृत किया। जो राजद के लिए नुकसानदेह ही रहा।
  • पोलिटिकली कोईरी पिछड़े माने जाते हैं। लेकिन कोइरियों के बारे में एक कहावत है कि “सुतल कोईरी साग बराबर और जागल कोईरी आग बराबर।” जाने-अनजाने तारापुर उपचुनाव कोइरियों के नाक से जुड़ गया। इसका असर वोटिंग पर भी हुआ।
  • राजद ने जदयू और वीआइपी के कुछ दगे हुए कारतूसों को पार्टी में शामिल तो कराया, उनको प्रदेश स्तर पर सुर्खियां भी मिली, पर वे उस तरह काम न आ सके।
  • सबसे बड़ी चूक राजद की जयप्रकाश नारायण यादव जी के मन को पढ़ने में हुई। राजनीति में राजनीतिक जमीन सबको प्यारी होती है। एक्सपेरिमेंट के नाम पर कोई उसे खोना नहीं चाहता। मेरा मत है कि जयप्रकाश जी भी ऐसा नहीं चाहते होंगे।
  • मेरी समझ में जयप्रकाश नारायण यादव ठीक से कोशिश करते तो खड़गपुर संभल जाता और परिणाम कुछ और भी हो सकते थे। खासकर, वोट वाले दिन खड़गपुर और संग्रामपुर में राजद कार्यकर्ता उदासीन दिखे। ऐसा क्यों हुआ?
  • इनके अलावा महिलाएं नीतीश कुमार के वोट बैंक का फिक्स्ड डिपॉजिट हर बार साबित हुई हैं। साथ ही जदयू के नेताओं ने माइक्रो लेवल पर काम किया। कुछ को विरोध भी झेलना पड़ा, पर वे डटे रहे।
  • राजद के लोग लालू यादव की रैली की भीड़ देखने के बाद ओवर कॉन्फिडेंस में आ गये। जिसने राजद के नये समीकरण को भी नुकसान पहुंचाया। 
  • भकचोन्हर शब्द की इंट्री भी बेवजह राजद के लिए समस्या बनी, जबकि राजद खुद की छवि बदलने के लिए ही सारा संघर्ष कर रही है। इसके साथ-साथ नीतीश सरकार के विसर्जन की बात भी जदयू समर्थकों को नागवार गुजरी।
  • कुल मिलाकर राजद जीती बाजी हार गया और जदयू हाथ से निकलती बाजी को अपने नाम कर सिकंदर बन गया। 

(नोट : यह चुनावी विश्लेषण बिहार-झारखंड के ख्यातिलब्ध युवा पत्रकार व राजनीतिक समीक्षक विवेकानंद सिंह का है। तारापुर के पड़ोसी बांका जिला के निवासी होने के कारण वे अंग प्रदेश की माटी से जुड़े हैं। इस आलेख को उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से लिया गया है। यह लेखक का निजी विचार है।)

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