—– संपादक —–
(बिहार में विधानसभा चुनाव का काउंट डाउन शुरू है। राजनीतिक दलों की गतिविधियां धीरे-धीरे गति पकड़ रही हैं। सोशल मीडिय पर लोग अपने-अपने विचार रख रहे हैं। युवा पत्रकार विवेकानंद सिंह ने बिहार विधानसभा चुनाव पर अपनी बेबाक राय रखी है। इसे फेसबुक पोस्ट से लिया गया है। ये लेखक के निजी विचार हैं।
—– विवेकानंद सिंह ——
PATNA (SMR)। अधिकांश राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव में तमाम आलोचनाओं/सृजन घोटाला/मुजफ्फरपुर बाल गृह यौन शोषण केस/चमकी बुखार मामला/लॉकडाउन के दौरान हुए पलायन के दर्द आदि की वजह से सरकार के घिरने के बाद भी नीतीश कुमार रेस में आगे चल रहे हैं।
इसके लिए दो तर्क दिये जा रहे हैं – पहला यह कि विपक्ष के नेता इन मुद्दों को जनता के बीच ठीक से ले जा नहीं पाए, वे ट्वीटर पर जितने सक्रिय रहते हैं, उतने जमीन पर नहीं, आदि-इत्यादि। और दूसरा तर्क यह कि 15 वर्षों तक लालू प्रसाद और राबड़ी देवी का शासन तथाकथित जंगलराज था, ऐसे में उनकी पार्टी फिर शासन व्यवस्था में आयी तो क्या होगा।
पहले तर्क को मीडिया के लोग/आमलोग/राजद के शुभचिंतक भी कहते रहते हैं। इसमें तेजस्वी यादव के पास सुधार की गुंजाइश है। वहीं दूसरे तर्क के आधार पर जदयू-बीजेपी और मीडिया के लोग तीनों तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी को खारिज करते हैं।
क्या जदयू को राजद के पिछले 15 सालों के कार्यकाल को खारिज करने का नैतिक हक बचा है? 2015 में पति-पत्नी के शासनकाल को जदयू क्यों भूल गयी थी? उनके साथ 2 साल तक सरकार कैसे चलायी?
मेरा मानना है कि जदयू को अपना चुनाव अपने किये काम के आधार पर ही लड़ना चाहिए। अगर वे अपने काम का ठीक-ठीक हिसाब जनता को नहीं दे पाते हैं, तो उन्हें नाकाम माना जाना चाहिए, क्योंकि अब उनके द्वारा राजद के 15 साल को कोसना उन्हें ज्यादा एक्सपोज करेगा। दरअसल, यह भाजपा स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स है, अपनी जिम्मेदारियों से भागते हुए, सारा दोष विपक्षी पर मढ़ देना।
तेजस्वी यादव ने इधर यह भी कहा है कि उनकी पार्टी के 15 वर्षों के शासनकाल के दौरान जो कमियां रहीं, उसके लिए वे माफी मांगते हैं। यह एक तरह की राजनीतिक नैतिकता है। आपके दल की गलती की सजा जनता आपके दल को सत्ता से बाहर कर दे चुकी है। मेरा मानना है कि तेजस्वी यादव की राजनीति का आकलन 2015 से होना चाहिए, न कि 1990 से।
राजनीतिक पंडित जो भी मानें, लेकिन मैं अब भी मानता हूं कि अगर राजद और कांग्रेस ठीक से बिहार विधानसभा चुनाव लड़े तो इस दफा उनके लिए संभावना बाकी है। बशर्ते राजद को खुद पर यकीन कर सभी वर्ग को अपनाते हुए समर में उतरना होगा।
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