वो भी क्या दिन थे : छत पर चढ़ कर तब घुमाते थे एंटीना, नीचे से लोग कहते- ‘थोड़ा और घुमाओ’

PATNA (MR) : दूरदर्शन का एंटीना युग ख़त्म। आज दूरदर्शन सेटेलाइट युग में आ गया है। केंद्र सरकार ने इसके रिले केंद्रों को बंद करने का आदेश दिया है। एक अक्टूबर से देश के सैकड़ों केंद्र बंद हो गए। दूरदर्शन और एंटीना के स्वर्णिम युग को याद कर रहे हैं पूर्वी चंपारण के मोखलिसपुर निवासी वरीय पत्रकार अजय सिंह। उन्होंने बखूबी इसे बड़े ही जीवंत अंदाज में उकेरा है। यह हर घर की और उस दौर की सच्ची कहानी है, जब मुहल्ले के लड़के टीवी पर साफ प्रसारण देखने के लिए छत पर चढ़कर एंटीना घुमाते थे, नीचे से घरवाले कहते थे- ‘थोड़ा और घुमाओ… ‘ 

वरीय पत्रकार अजय सिंह ने इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है, इसे मुखियाजी डॉट कॉम पर अक्षरशः प्रकाशित किया जा रहा है- ‘दूरदर्शन की स्थापना 15 सितंबर 1959 को हुई थी। कई पड़ावों से होता हुआ आज दूरदर्शन सेटेलाइट युग में है। 1965 के दशक से एनालॉग फ्रिक्वेंसी से प्रसारण शुरू हुआ था। इस प्रसारण में एंटीना का उपयोग होता था। घर की छतों पर एक पाइप के सहारे एंटीना लगा होता था। वह तरंगों को पकड़ कर घर के अंदर के टीवी सेट पर दूरदर्शन के कार्यक्रमों को दिखाता था। इसके लिए देश के छोटे-बड़े शहरों में रिले केंद्र होते थे। ये मध्यम और उच्च शक्ति के होते थे। 

बिहार में पहला उच्च शक्ति का रिले केंद्र मुजफ्फरपुर में था। कटिहार, पटना और अविभाजित बिहार का रांची, जमशेदपुर, डालटेनगंज में भी उच्च शक्ति के रिले केंद्र थे। एक अक्तूबर 2021 से एनालॉग फ्रीक्वेंसी से तीन चरणों में 412 रिले केंद्र बंद कर दिये गये। यानी कल शुक्रवार से एंटीना के जरिए होने वाला प्रसारण बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो गई। डीटीएच सेवा जारी रहेगी। आगामी महीनों में यानी 31 दिसम्बर 2021 तक बिहार के पंद्रह कम शक्ति वाले रिले केंद्र (मोतिहारी भी शामिल है) सहित देश के ऐसे 412 केंद्र बंद होंगे। अब सेटेलाइट के माध्यम से दूरदर्शन के प्रसारण देखे जा सकेंगे। एंटीना युग में प्रसारणों को देखने के लिए कोई शुल्क नहीं था। लेकिन 70 के दशक के मध्य के कुछ बाद तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के प्रसारणों को सुनने-देखने के लिए डाक तार विभाग में शुल्क जमा कर लाइसेंस लेनी पड़ती थी, जो बाद में भारत सरकार ने हटा दिया। तब बिना लाइसेंस के रेडियो सुनना और दूरदर्शन के कार्यक्रमों को देखना दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता था। छतों पर टंगे एरियल यानी एंटीना बाहर से ही बता देते थे कि किन घरों में टेलीविजन सेट उपलब्ध हैं. ये आपकी शानो-शौक़त की निशानी थी। कई घरों के लोग लोकप्रिय प्रसारणों को देखने के लिए जुटते थे।

युग बदलने के साथ विज्ञान ने बहुत कुछ बदल दिया। सेटेलाइट ने कई क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। डिजिटल होती दुनिया इन्टरनेट से आसान हो गई। विकास के कई आयामों को पर्याप्त रफ़्तार मिला। अब सुरक्षा के ख़तरे हैं। साइबर अपराध पिछले चार साल में दस गुणी वृद्धि के साथ चिंतनीय स्थिति में हैî यहां जरा-सी असावधानी बड़ा और प्रभावी नुक़सान दे सकती है। अब टीवी चैनलों के डिजिटल युग में आने से इंटरनेट के जरिए मोबाइल पर भी इनके प्रसारण उपलब्ध हैं। परिवर्तन हुआ है। आगे भी होंगे। अब भारत 5G के युग में प्रवेश कर रहा है, जबकि कई अन्य समृद्ध देश इससे कई गुणा आगे की तकनीक ला चुके हैं। भारत में 5G के आने से इंटरनेट की रफ़्तार बढ़ जाएगी, जिससे अन्य कई सुविधाएं उपलब्ध होंगी। दृश्य और श्रव्य और साफ स्पष्ट होंगे। 

विज्ञान के विकास के साथ-साथ हमें समय के सदुपयोग और उसकी अहमियत को भी जानना, समझना और स्वीकारना आना चाहिए। कोई भी तकनीकी या अन्य विकास बग़ैर मानवीय एकता, आत्मीय जुड़ाव और परस्पर सहभागिता के अधूरा है। विज्ञान वरदान है तो अभिशाप भी है। बदलते समय के साथ चलने के लिए हमें अपनी सभी तैयारियां बदलते परिवेश के अनुकूल जारी रखनी होगी।

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