PATNA (MR) : बिहार प्रगतिशील लेखक संघ की ओर लेखक डॉ ब्रज कुमार पांडे की स्मृति में परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में साहित्यकार, कवि, रंगकर्मी, सामजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ विभिन्न जन संगठनों के लोग मौजूद थे। इसमें मौजूद कवियों ने अपनी कविताओं से सामाजिक कुरीतियों के साथ ही सरकार की गलत नीतियों पर भी प्रहार किया। परिचर्चा का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ की पटना इकाई के कार्यकारी सचिव जयप्रकाश तो काव्य पाठ का संचालन राजकिशोर राजन ने किया।

बांग्ला कवि और बिहार हेराल्ड के संपादक विद्युत पाल ने कहा- ‘हम अपनी प्रतिबद्धता को लेकर बहुत साफ है। संवेदनशुन्यता को न्यू नॉर्मल कहा जाता है। सिर्फ कह देने से कि हम साथ हैं, काम नहीं चलेगा। संवेदना को हम उस स्तर तक ले जाएं, जो हमारे लिए वह न्यू नॉर्मल हो सके। हम कितना भी प्रतिबद्ध हैं, तो इसका यह मतलब नहीं है कि हम कूड़ा लिखें।’ पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो तरुण कुमार ने नागार्जुन, दिनकर आदि कवियों का उदाहरण देते हुए कहा कि 1940 से 1960 तक प्रगतिशील लेखक संघ के विरोधी हमलावर की तरह बात करते थे, क्योंकि प्रतिबद्धता उनके लिए मार्क्सवाद का पर्याय था। अज्ञेय को भिन्न रूप में देखा गया। मैथिलीशरण गुप्त को भी अलग ढंग से देखा गया। मार्क्सवाद ने टेक्स्ट के बदले कंटेंट पर अधिक ध्यान देते थे। इसके कारण कई मार्क्सवादी आलोचकों को यू-टर्न लेना पड़ा। नागार्जुन ने अपनी कविता में प्रतिबद्ध होने के साथ-साथ संबद्ध और आबद्ध होने की बात की थी। मुक्तिबोध ने कम्युनिस्ट नेता डांगे को कविता के संबंध में पत्र लिखा था कि प्रगतिशीलता कैसे भटक गयी थी। मुक्तिबोध का रिश्ता मार्क्सवाद से ऑक्सीजन की तरह था।
सुप्रसिद्ध कवि अरुण कमल ने कहा कि मेरा ब्रज कुमार पांडे से गहरा रिश्ता था। उन्होंने लोहिया, जाति के सवाल और सफेदपोशों के अपराध पर लिखा था। हमें उनकी किताबें पढ़नी चाहिए। लेखक चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसकी एक सामाजिक भूमिका होती है। यदि आप भाषा का उपयोग कर रहे हैं तो उसके प्रति प्रतिबद्ध तो होना होगा। शेक्सपियर ने अपने अंतिम नाटक में कहा था कि जिसको भी मैंने दुख भोगते देखा, उसके दुख में शामिल हूं। प्रेमचंद से बड़ा लेखक भारत में कोई नहीं हुआ। वाल्मीकि के समय से ही आपको पक्ष तो लेना होगा। सवाल केवल लेखकों व कलाकारों का नहीं, हम सबका है। सृजनात्मकता का बहुत ज्यादा संबंध दूसरों के साथ दुख भोगने में है। आप मीर को देखिये, कैसा दुख था उनका। जितनी गालियां तुलसीदास को मिली हैं, उतनी गाली किसी को नहीं मिली। तुलसी कहते हैं कि अब क्या सत्ता की मानसबदारी करेंगे? सत्ता से लाभ लेंगे तो आप बड़े लेखक नहीं हो सकते। धन और सत्ता के प्रति हिकारत के बगैर बड़ा लेखक नहीं हो सकता। आज देश के 20 प्रतिशत लोगों के हाथ में 99 प्रतिशत संपत्ति है। लोगों में अपनी जान हथेली पर रखकर सच कहने का साहस होना चाहिए।

कथाकार ऋषिकेश सुलभ ने कहा कि ब्रज कुमार पांडे ने कई और विविध विषयों पर किताबें लिखी थीं। इसी सवाल से जूझते हुए मेरा अलगाव हुआ था। क्या विचार सिर्फ संगठन की मिलकियत है, इन सब सवालों से जूझता रहा। विचार के बगैर कोई मनुष्य नहीं हो सकता। मनुष्य से मनुष्य के लिए जो भी स्वप्न देखा, उसमें मार्क्सवाद से बेहतर कुछ नहीं है। बिहार में गिने- चुने नाट्य संगठन बचे हैं, जो संस्कार भारती से बचे रहे। उन्हें जबरन या लालच देकर संस्कार भारती में शामिल कराया गया। मात्र 10 प्रतिशत रंगकर्मी बच पाए हैं। हर लेखक वंचितों के पक्ष में रहेगा। लेखक संगठन को अपनी प्रतिबद्धता को लेकर हिंसक नहीं होना चाहिए। लेखक को फलने-फूलने के लिए माहौल मुहैया कराना चाहिए। लेखकों को भेड़ की तरह हांकने की प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कथाकार संतोष दीक्षित ने कहा कि ब्रज कुमार पांडे संगठन के लिए हमेशा तत्पर रहा करते थे। शीतयुद्ध के समय से यह सवाल चला आ रहा है कि रचना का विचार से कोई संबंध नहीं है। आज कबीर पर 600 साल बाद जर्मनी में गोष्ठी हो रही है। लेखन यदि वक्ती लेखन है तो उसे पत्रकारिता से अलग होना चाहिए। इस पूंजीवादी दौर में इतना ज्यादा लेखन हो रहा है कि दृष्टिकोण का पता नहीं चलता है, जबकि इसमें दृष्टिकोण का साफ होना जरूरी है। आज का अखबार आर्थिक विषमता पर बात नहीं करता। इन चीजों को नजरअंदाज किये बिना कोई लेखन करता है तो वह सही नहीं है। साथ ही उनके मन में कहीं न कहीं सत्ता का डर भी है।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इस सत्र में पृथ्वी राज पासवान, शोवन चक्रवर्ती, उपांशु, गुंजन उपाध्याय पाठक, अंचित, शहंशाह आलम, श्रीधर करुणा निधि, प्रियदर्शी मातृ शरण, विजय कुमार सिंह, कुमार मुकुल, पंकज प्रियम, आदित्य कमल, राजेश शुक्ल, राजन, विद्यु पाल, ओसामा आदि कवियों ने अपनी कविताओं से सामाजिक बुराइयों पर प्रहार किया। इस मौके पर चर्चित लेखक अरुण सिंह, वरिष्ठ चित्रकार अर्चना सिन्हा, ए. एन कॉलेज में उर्दू के प्राध्यापक मणिभूषण कुमार, प्राच्य प्रभा के संपादक विजय कुमार सिंह, कुमार सर्वेश, रौशन कुमार, अरुण कुमार मिश्रा आदि मौजूद रहे।