पहली किस्त : तेजस्वी का ‘अतिपिछड़ा न्याय संकल्प’ ; आरोपों से आगे, सामाजिक विश्वास की नयी पहल

Rajesh Thakur | Patna : बिहार की राजनीति में सामाजिक न्याय की परिभाषा एक बार फिर बदलती दिख रही है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने पार्टी का नया दस्तावेज ‘अतिपिछड़ा न्याय संकल्प’ जारी किया। इसमें 10 बिंदुओं के जरिए उन्होंने उस वर्ग के अधिकारों, सुरक्षा और सम्मान को कानूनी ताकत देने की घोषणा की, जो कि एक सराहनीय पहल है। यह ऐसा ज्वलंत मुद्दा है, जो अब तक राजनीतिक विमर्श में तो शामिल रहा, लेकिन नीति के केंद्र में कभी नहीं रहा। इस संकल्प का सबसे बड़ा बिंदु है ‘अतिपिछड़ा अत्याचार निवारण अधिनियम’ का निर्माण, जिसके तहत राज्य के किसी भी हिस्से में अतिपिछड़ा समाज के साथ दुर्व्यवहार, भेदभाव या हिंसा के मामलों पर सख्त कानूनी कार्रवाई का प्रावधान होगा। इसे जारी करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा भी कि लालू जी ने पिछड़ों को आवाज दी थी, अब हमारी लड़ाई है अतिपिछड़ों को अधिकार दिलाने की। यह केवल सामाजिक नहीं, नैतिक जिम्मेदारी भी है।

दरअसल, राजनीतिक विरोधी अक्सर यह आरोप लगाते रहे हैं कि यादव समाज, जो राजद का पारंपरिक आधार माना जाता है, अतिपिछड़े वर्गों के प्रति दबाव और मारपीट जैसी घटनाओं में शामिल रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत यह रही है कि अतिपिछड़े समाज पर अत्याचार दबंग और ऊँची जातियों की ओर से होता रहा है, न कि पिछड़ों की ओर से। ऐसे में यादव जाति से आने वाले तेजस्वी का यह संकल्प न केवल एक राजनीतिक घोषणा है, बल्कि भरोसे की खाई पाटने का प्रयास भी है, ताकि अतिपिछड़ा समाज यह महसूस कर सके कि उसकी लड़ाई अब किसी वर्ग विशेष की नहीं, बल्कि पूरे सामाजिक न्याय के आंदोलन की संयुक्त पहल है। राजद के इस दस्तावेज में केवल घोषणाएं नहीं, बल्कि ठोस कदम सुझाए गए हैं। मसलन, अतिपिछड़ों के लिए विशेष छात्रवृत्ति योजना, कौशल विकास में प्राथमिकता नीति, पंचायतों में प्रभावी प्रतिनिधित्व और सरकारी तंत्र में सुरक्षा तंत्र की निगरानी समिति का गठन।

इतना ही नहीं, 25 करोड़ रुपयों तक के सरकारी ठेकों/आपूर्ति कार्यों में अतिपिछड़ा, अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जाति के लिए 50% आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा, भी एक बड़ी घोषणा है। संविधान की धारा 15 (5) के अंतर्गत राज्य के सभी निजी शिक्षण संस्थानों के नामांकन हेतु आरक्षण लागू किया जाएगा। खास बात कि इसकी देखरेख के लिए उच्च अधिकार प्राप्त आरक्षण नियामक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा, और जातियों की आरक्षण सूची में कोई भी परिवर्तन केवल विधान मंडल की अनुमति से ही संभव होगा। बिहार की राजनीति पर पैनी पकड़ रखने वाले शिक्षाविद विश्वनाथ कुमार उर्फ लालटुन यादव के अनुसार, यह कदम न केवल अतिपिछड़ा समाज के भीतर नयी उम्मीद जगाएगा, बल्कि राजद और यादव समाज की छवि को भी सामाजिक समानता के नए स्वरूप में प्रस्तुत करेगा।

वे बताते हैं कि राजद ने इस संकल्प को ‘न्याय से आगे, सम्मान की ओर’ की अवधारणा से जोड़ा है। इससे समाज के सबसे निचले पायदान को सीधा लाभ होगा, साथ ही उस समाज को समानता का अधिकार मिलेगा। बिहार की राजनीति में जहां जातीय समीकरण सत्ता का रास्ता तय करते हैं, वहीं तेजस्वी यादव की यह पहल सामाजिक विश्वास, समानता और संवेदना की राजनीति की ओर एक बड़ा कदम माना जा रहा है। बेशक यह तेजस्वी यादव की सामाजिक धारणा को तोड़ने की एक सार्थक कोशिश है।