PATNA (MR) : PMCH। एक समय यह अस्पताल देश भर में ख्यातिलब्ध था। आज भी यह बिहार का सबसे बड़ा अस्पताल है। आज यह अपना 100वां स्थापना दिवस मना रहा है। इसे लेकर पूर्ववर्ती छात्रों से लेकर मीडिया संस्थानों तक अपनी यादें साझा कर रहे हैं। इसी के तहत एक अखबार में यह भी छपा है कि एक समय पीएमसीएच में इतनी बेहतर व्यवस्था थी कि महात्मा गांधी की पोती ने भी अपना इलाज कराया था। इस पर वरीय पत्रकार पुष्यमित्र ने फैक्ट रखते हुए लंबा फेसबुक पोस्ट लिखा है और बताया है कि मनु बेन का इलाज की परिस्थिति कुछ और थी। पढ़िए उनकी सोशल मीडिया से ली गयी पूरी रिपोर्ट। इसमें लेखक के निजी विचार हैं।

आज दैनिक भास्कर में मशहूर चिकित्सक और भाजपा नेता सीपी ठाकुर के हवाले से यह खबर छपी है कि पीएमसीएच की चिकित्सा व्यवस्था इतनी बेहतर थी कि गांधीजी की पोती ने भी यहां अपना इलाज कराया था। मुमकिन है PMCH की उस जमाने में बहुत ख्याति रही होगी, मगर सच यह है कि गांधीजी की पोती मनु बेन ने अपना इलाज इस अस्पताल की ख्याति की वजह से यहां नहीं कराया था।

उस जमाने में मनु बेन यहीं पटना में थीं। गांधीजी यहां नोआखली दंगों की प्रतिक्रिया में हुए दंगों को शांत कराने के लिए आए हुए थे और लगभग तीन महीने यहां रहे, AN Sinha institute के आउट हाउस में। तभी मनु बेन को अपेंडिक्स का दर्द हुआ और उन्हें आनन-फानन में PMCH में भर्ती कराया गया, जहां उनकी सर्जरी हुई। इस पोस्ट के साथ जो तस्वीर लगी है वह मनु बेन के अपेंडिक्स की सर्जरी की ही तस्वीर है। फोटो में गांधीजी भी बैठे दिख रहे हैं।

गांधीजी ऑपरेशन थिएटर में क्यों बैठे थे, इसकी भी गजब कहानी है। दरअसल, गांधीजी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विरोधी थे और वे अपना और अपने करीबियों का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से ही करते थे। यहां तक कि पटना आने पर एक बीमार बड़े मुस्लिम लीग नेता को भी उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा के लिए मना लिया और उनके लिए कलकत्ता से प्राकृतिक चिकित्सक को बुलाया। ऐसे में जब मनु बेन के पेट में तेज दर्द हुआ तो डॉक्टरों ने कहा कि यह अपेंडिक्स का दर्द है और उनके प्राकृतिक चिकित्सकों ने कहा, यह अपेंडिक्स का दर्द नहीं है। प्राकृतिक चिकित्सक इस रोग को पहचान नहीं पाए और मनु बेन की हालत बिगड़ने लगी। तब उन्हें सर्जरी के लिए भर्ती कराया गया। गांधी जी यह देखना चाहते थे कि क्या सचमुच उनके प्राकृतिक चिकित्सक गलत साबित हुए, इसलिए वे जिद करके सर्जरी रूम में बैठ गए।
बाद में आधुनिक डॉक्टरों की बात सच साबित हुई। वे इस बात से बहुत उदास हुए और कई प्राकृतिक चिकित्सकों को पत्र लिखा और कहा कि अब मैं कैसे किसी को कहूंगा प्राकृतिक चिकित्सकों के भरोसे ही रहना। एक तरह से यह घटना गांधीजी के जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति उनके मोह के टूटने की है और उन्होंने आखिरकार आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के महत्व को स्वीकार किया।
