PATNA (SMR) : बिहार सरकार की ओर से 2021-22 का आर्थिक सर्वे (Bihar Economic Survey 2021-22) जारी कर दिया गया है। इसमें सूबे के सभी जिलों के प्रति व्यक्ति आय का डेटा के साथ सरकार की ओर से इसमें विकास के कई बड़े दावे भी किये गये हैं। इसे राष्ट्रीय स्तर के वरीय पत्रकार और विश्लेषक पुष्यमित्र के फेसबुक पोस्ट से लिया गया है। इसमें लेखक के निजी विचार हैं। नीचे पढ़ें इनकी अक्षरशः रिपोर्ट –
इस रिपोर्ट का मुझे हर साल इंतजार रहता है। हर साल इस की कॉपी मुझे रिलीज होने के कुछ दिन बाद मिलती है। आज रिलीज होने के दिन ही मिल गयी। घर आकर सरसरी तौर पर पढ़ा तो लगा कि कुछ खास बदला नहीं है।
प्रति व्यक्ति आय से लेकर औद्योगिक विकास तक एक ही पैटर्न पर बिहार चल रहा है। अभी भी पटना प्रति व्यक्ति आय में सबसे आगे है और शिवहर सबसे पीछे। शिवहर के लोगों के मुकबाले पटना वाले सात गुना अधिक कमाते हैं। उत्तर बिहार गरीब है और दक्षिण बिहार संपन्न। हालांकि, पटना के बाद सबसे अधिक कमाई वाले जिले बेगुसराय और मुंगेर हैं। शिवहर के बाद सबसे कम आय वाले जिले अररिया और पूर्वी चंपारण हैं।
अभी भी राज्य के लगभग 60 फीसदी लोग खुद का काम करते हैं, 30 फीसदी से कुछ अधिक कैजुअल लेबर हैं और 10 फीसदी के करीब ही ठीक-ठाक काम करते हैं। 46 फीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं, 21 फीसदी कंस्ट्रक्शन लेबर हैं और 13.5 फीसदी लोग दुकान आदि में काम करते हैं।
सड़कें, पुल-पुलिये खूब बन रहे हैं, मगर अस्पतालों में अभी भी डॉक्टर और नर्सों के पद खाली हैं। अभी भी बिहार सरकार अपने कुल खर्च का 25 फीसदी ही अपनी तरफ से जुटा पाता है, 75 फीसदी केंद्र से लेता है।
बैंक वाले अभी भी बिहार के लोगों को लोन नहीं देना चाहते। बिहार के लोग सौ रुपये जमा करते हैं तो बैंक उन्हें 41 रुपये का ही लोन देते हैं। हां, पूर्णिया जिले के लोगों पर बैंक मेहरबान हैं। उन्हें सौ रुपये के बदले 81.8 रुपये तक लोन दे दिया जाता है।
इस बार बिहार सरकार का कहना है कि उसने सोशल सेक्टर में अपना खर्चा बढ़ा दिया है। हालांकि यह इसलिए है, क्योंकि इस बार वैक्सीनेशन पर खूब पैसे खर्च हुए हैं.
सबसे महत्वपूर्ण बात बिहार सरकार का यह दावा है कि साल 2021-22 में उसकी अर्थव्यवस्था ने 2.5 फीसदी की दर से विकास किया है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस अवधि में देश की अर्थव्यवस्था माइनस 7.2 फीसदी की दर से गोते खाती रही।
हालांकि, अब यह किताब उस क्वालिटी के हिसाब से तैयार नहीं होती, जैसे पहले होती थी। मगर फिर भी 500 पन्ने से अधिक मोटी यह किताब आज भी बिहार के विकास को समझने के लिए बड़ा महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ है।