PATNA / VARANASI (SMR) ;: दिशा-दिशा में लोकरंग का तार-तार है, महका-महका सोंधी माटी का बिहार है… बेशक इस बिहार गान को आपने सुना होगा। कमोबेश बिहार की राजधानी पटना की भी यही स्थिति है। कई नामों से प्रचलित पटना के पोर-पोर में इतिहास भरे पड़े हैं और अब वह कण-कण में बिखर रहे हैं। लेखक व पत्रकार अरुण सिंह की किताब ‘पटना खोया हुआ शहर ‘ के बहाने पत्रकार कम, पुस्तक समीक्षक रजिया अंसारी ने न केवल पटना का भ्रमण किया, बल्कि आज के युवाओं की सोच पर अफसोस भी जताया, जो अपनी धरोहर को संजो नहीं पा रहे हैं। यूपी के गोरखपुर की रहने वाली रजिया ने पूरे संस्मरण को अपनी लेखनी से पिरोया है और बिहार-पटना को नजदीक से जिया है। अब आप पूरा संस्मरण पढ़ें…
रजिया अंसारी के शब्दों में- यह किताब हमने पटना पुस्तक मेला से 2018 में ली थी। तब हम पटना शहर को ज्यादा समझे नहीं थे और न ही ज्यादा घूमे थे। ऑफिस से रूम और रूम से ऑफिस। बहुत हुआ तो गांधी मैदान चले जाते थे। तब इस किताब को ऐसे ही हमने पढ़ लिया था। फिर जब पटना से विदाई का समय आया, तो एक प्यारी दोस्त Rupa मिली, जिनके साथ हमने पटना को एक अलग नजरिये से देखा और घूमा। तब हमें भी महसूस हुआ कि पटना क्या था और अब क्या हो गया ?
रजिया कहती हैं… इतनी ऐतिहासिक इमारतों और घटनाओं का गवाह यह पटना शहर अब सच में खोया हुआ शहर लगता है। जिस गंगा नदी की वजह से यह शहर व्यापार का केंद्र बना था। विदेशी यहाँ आकर मालामाल हुए, उसी गंगा नदी की आज क्या दशा है ? यहाँ की ऐतिहासिक इमारतें और मकान ज़मीदोज़ हो रहे हैं। गंगा पथ पर लोग सेल्फी ले रहे, रील्स बना रहे hainपर सिकुड़ती और सिसकती गंगा किसी को नहीं दिख रही है।

इसी किताब में पता चला कि कभी इस शहर जन्नतुल हिंद भी कहा जाता था, पर आज गरीब राज्यों में इसकी गिनती होती है। सरकारें भी सिर्फ विकास के नाम पर पुल और सड़क बना कर कोरम पूरा कर दे रही हैं। किसी भी शहर की सुंदरता उसके इतिहास में होती है। इस किताब को पढ़ने के बाद आपको यह शहर खोया हुआ ही लगेगा। अधूरा और टूटा फूटा। हर पटनावासी को तो यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए। और सोचें कि वह किस पर गर्व करें, अतीत या वर्तमान पर।
इस किताब को हमने दुबारा पढ़ा। फिर उन जगहों पर गए। एक अलग तरह का रोमांच हुआ। वैसे तो बहुत-सी चीजें अब गुम हो गई हैं, पर जो बची है उसे सहेजने की जरूरत है। पर सवाल ये है कि उसे सहेजेगा कौन?