PATNA (MR) : बिहार में चुनावी साल चल रहा है। नेताओं की नूराकुश्ती चरम पर है। विकास की ढोल पीटने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रगति यात्रा पर निकले हुए हैं, जबकि उसी ढोल में छेद करने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी राज्य में लगातार यात्रा कर रहे हैं। इन्हीं यात्राओं के बीच ‘मोकामा कांड’ ने मीडिया को ‘क्राइम यात्रा’ पर लिखने का एक बहाना गढ़ दिया। यह मोकामा कांड बिहार पॉलिटिक्स के लिए कितना अहितकारी है, इसी मुद्दे पर बिहार-झारखंड की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरीय पत्रकार विवेकानंद सिंह कुशवाहा की पढ़िए पड़ताल करती एक रिपोर्ट। इसे उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से अक्षरशः लिया गया है और इसमें उनके निजी विचार हैं।

बांग्ला में एक कहावत है – ‘साग दिये माछ चापा जाये ना’ यानी साग से मछली पकाने की खुशबू को नहीं ढंका जा सकता है। इस संदर्भ में एक प्रसंग है कि एक बार एक बंगाली महिला मछली को तेल में फ्राइ कर रही थी, तभी उसके घर मेहमान आ गये। महिला ने जल्दी में मछली की खुशबू (बदबू) को छिपाने के लिए उसपर साग छौंक दिया, पर मछली की खुशबू को वह छिपा नहीं पायी। अब आते हैं बीते दिनों हुए मोकामा विधानसभा के नौरंगा जलालपुर के फायरिंग कांड पर। इस फायरिंग कांड में सबके अलग-अलग वर्जन हैं। पुलिस का वर्जन 17 से 20 राउंड फायरिंग का है। लोकल लोगों का वर्जन 70 राउंड का है, बाहुबली प्रेमी पत्रकारों का वर्जन 100 प्लस राउंड फायरिंग का है।


खैर, वह जो भी हो। दिलचस्प यह है कि भूमिहार जाति से आने वाले दो बाहुबली गुटों (अनंत सिंह गुट और विवेका पहलवान गुट) के बीच हुई इस फायरिंग में घायल हुए इकलौते शख्स का नाम ‘उदय यादव’ है। उदय यादव, अनंत सिंह के आदमी बताये जाते हैं। यानी कहें तो जिन दो पक्षों के बीच फायरिंग कांड हुआ, सीधे-सीधे उनमें से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। जैसे यह फायरिंग झगड़े की जगह हर्ष में हुए हों।

दरअसल, मोकामा, बिहार की वह विधानसभा सीट है, जहां से आजादी के बाद से अब तक (1967 के चुनाव परिणाम को अलग कर दिया जाये तो) सिर्फ भूमिहार समाज के विधायक रहे हैं। 1985 से पहले यहां से जितने भी विधायक बने, वो बाहुबली की पहचान नहीं रखते थे, लेकिन 1990 से यह सिलसिला टूटा और यह बाहुबली भूमिहारों का विधानसभा क्षेत्र बन गया। कोई पढ़ा-लिखा आम भूमिहार नेता भी यहां से विधायक बनने की नहीं सोचता है। दूसरे किसी समाज की तो बात ही छोड़ दीजिए। वैसे देखें तो मोकामा विधानसभा में धानुक समाज की आबादी भी इतनी है कि उनके समाज से मोकामा से विधायक चुने जा सकते हैं, लेकिन कोई खड़ा होने की हिम्मत ही न कर पाता, ऐसा माहौल ये बाहुबली बंधु बनाकर रखते हैं। दोनों गोली-गोली खेलते रहते हैं, ताकि कोई तीसरा न उभरे।

1990 से ही बाहुबल के सहारे मोकामा पर दिलीप सिंह / सूरजभान सिंह और अनंत सिंह ने कब्जा जमा रखा है, जबकि अनंत सिंह का घर तो बाढ़ विधानसभा में आता है। अभी बिहार की राजनीति में ट्रांसफॉर्मेशन का फेज चल रहा है। बहुत कुछ बदलेगा आने वाले समय में। बिहारी अब बिहार में ही रोजगार चाह रहे हैं, इसे लंबे समय तक नहीं टाला जा सकता है। यही वजह है कि विकास से कोई रिश्ता न रखने वाले नेता लोग हवा में फायरिंग कर रहे हैं, ताकि यदि कोई आम नेता विकास के सवाल पर मोकामा से विधायक बनने की सोच भी रहा हो, तो अपनी सोच ड्रॉप कर दे। मोकामा क्षेत्र एक समय तक उद्योगों के मामले में बहुत उन्नत क्षेत्र था, लेकिन बाहुबल दिखाने में सब चौपट हो गया। जैसे 1990 भी बिहार का परिवर्तन काल था, तब लालू प्रसाद यादव ने अनंत सिंह के भैया दिलीप सिंह को अपनी कैबिनेट मंत्री बनाकर साध लिया था। नीतीश कुमार सत्ता में आये तो अनंत सिंह को साधा। विवेका पहलवान के शिष्य सोनू-मोनू सिंह भी सोच रहे होंगे कि अगला मुख्यमन्त्री शायद उनको साध ले और मोकामा में बहुबलियत का जोर बना रहे।

खैर जो भी हो मोकामा से बाहुबली राजनीति का पटाक्षेप होना सिर्फ मोकामा की जनता के हित में ही नहीं, बिहार के हित में भी होगा। ऐसे दिनदाहाड़े अगर बिहार की राजधानी से 100 किलोमीटर की दूरी पर गोलियां गूंजेगी, तो समूचे बिहार को नुकसान होगा। जो उद्योगपति बिहार में निवेश का मन भी बना रहे होंगे, वह आशंकित हो जायेंगे। फिर उद्योग का विस्तार तो खटाई में चला जायेगा। क्योंकि, कितना भी लॉ एंड ऑर्डर के दुरुस्त होने की बात कह लीजिए, आपको पता होना चाहिए कि साग की छौंक से मछली की बदबू नहीं जाती।