ब्राह्मणों पर विवादित बयानों के बीच मिलिए ‘खट्टर काका’ से, असली पंडित कहां रहते हैं… Book Review

PATNA (APP) : हरिमोहन झा के ‘खट्टर काका’। दरअसल, खट्टर काका मैथिली के काफी मजबूत चरित्र हैं और इसकी प्रासंगिकता इसलिए भी बढ़ गयी है कि आज जो कुछ सियासी गलियारे में कही जा रही है, उसे इस ‘खट्टर काका’ ने वर्षों पहले कह दिया था। आपको याद होगा, इसी साल फरवरी में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था- जाति, वर्ण और संप्रदाय पंडितों के द्वारा बनाए गए थे। पहले देश में जाति प्रथा नहीं थी…’ इस पर सियासी बवाल हुआ। बाद में उन्होंने सफाई भी दी। लेकिन, हरिमोहन झा के खट्टर काका ने पंडितों और ब्राह्मणों पर तो चार दशक पहले ही उस बात को कह दिया, जिस पर अभी सियासी बवाल होते रहता है। आज उसी ‘खट्टर काका’ पर अपनी कलम चलायी है वरीय पत्रकार और पुस्तक समीक्षक रजिया अंसारी ने। यह रिपोर्ताज उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से लिया गया है।

ज से लगभग 50 वर्ष पूर्व खट्टर काका मैथिली भाषा में प्रकट हुए। जन्म लेते ही वह प्रसिद्ध हो उठे। मिथिला के घर-घर में उनका नाम चर्चित हो गया। उनकी विनोदपूर्ण वार्ताओं से उस जमाने में पत्र-पत्रिकाओं को एक नया स्वाद मिला। बाद में ‘खट्टर काका’ किताब के रूप में मैथिली में आए। अब तो हिंदी में भी यह किताब आ गयी है। मांग इतनी अधिक हुई कि 2022 में इसका 20वां संस्करण निकालना पड़ा। हिंदी में यह किताब राजकमल प्रकाशन से आयी है। राजकमल प्रकाशन की ओर से लिखा गया है- खट्टर काका मस्त जीव हैं। ठंडाई छानते हैं और आनंद-विनोद की वर्षा करते हैं। कबीरदास की तरह खट्टर काका उलटी गंगा बहा देते हैं। उनकी बातें एक-से-एक अनूठी, निराली और चौंकानेवाली होती हैं। मसलन, ब्रह्मचारी को वेद नहीं पढ़ना चाहिए। सती-सावित्री के उपाख्यान कन्याओं के हाथ नहीं देना चाहिए। पुराण बहू-बेटियों के योग्य नहीं हैं। असली ब्राह्मण विदेश में हैं। मूर्खता के प्रधान कारण हैं पंडितगण। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को फुसला दिया है, आदि-आदि।

खट्टर काका मैथिली और हिंदी के सुविख्यात लेखक प्रो. हरिमोहन झा की एक अनूठी हास्य व्यंग्य-कृति है। वैसे तो ये मूल रचना मैथिली में है, लेकिन हिंदी अनुवाद में भी यह किताब उपलब्ध है, जो राजकमल प्रकाशन से आसानी से मिल जायेगी। हिंदी में होने से हिंदी भाषी लोग भी हरिमोहन झा के खट्टर काका से परिचित हो सके हैं। खट्टर काका धर्म-पुराण, धार्मिक ग्रंथ, देवी-देवता, भगवान्, पोंगा पंडित और धार्मिक आडंबरोंं पर अपनी हास्य व्यंग्य शैली से गहरी चोट करते हैं। भगवान को कभी मौसा बनाते हैं, कभी समधी। कभी उन्हें नास्तिक प्रमाणित करते हैं, कभी खलनायक।

पुस्तक पर एक नजर

  • समीक्षित पुस्तक : खट्टर काका
  • लेखक : हरिमोहन झा
  • प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
  • पृष्ठ : 200
  • मूल्य : 200/- 
  • समीक्षक : रजिया अंसारी

खट्टर काका षोड्शोपचार पूजा को एकांकी नाटक मानते हैं और कामदेव को असली सृष्टिकर्त्ता। उन्हें उपनिषद में विषयानंद, वेद-वेदांत में वाममार्ग और सांख्य-दर्शन में विपरीत रति की झांकियां मिलती हैं। वह अपने तर्क कौशल से पतिव्रत्य को ही व्यभिचार सिद्ध करते हैं और असली को सती। खट्टर काका कहते हैं कि असली पंडित विद्या के पीछे रहते हैं, नकली पंडित विदाई के? पीछे। असली पंडित गुण की खोज में रहते हैं, नकली पंडित द्रव्य की खोज में। असली पंडित ज्ञान का विस्तार करते हैं, नकली, अपनी तोंद का असली पंडित मूर्खता का संहार करते हैं, नकली पंडित केवल मिष्टान्न का। भगवान सत्यनारायण की पूजा के बारे में व्यंग्य करते हुए खट्टर काका कहते हैं कि अगर शक्ति है, तो असली सत्यदेव की पूजा करो। जहां-जहां असत्य हो, अन्याय हो, धोखाधड़ी हो, जुआ-जोरी हो, घूसखोरी हो, कालाबाजार हो, सत्य पर पर्दा डालने की साजिश हो, वहां जाकर शंख फूंको, जनता में जागृति करो, समाज को सत्य के पथ पर लाओ। वही असली सत्यनारायण की भगवान की पूजा होगी। यदि वैसी पूजा होने लगेगी, तो सचमुच पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आएगा। कुछ भी दुर्लभ नहीं रहेगा।

खट्टर काका को कोई नास्तिक कहता है, कोई तार्किक, कोई विदूषक, कोई उनके विनोद को तर्कपूर्ण मानता है, कोई उनके तर्क को विनोदपूर्ण मानता है। खट्टर काका वस्तुत: क्या हैं, यह एक पहेली है, पर जो भी हों, वह शुद्ध विनोद-भाव से मनोरंजन का प्रसाद वितरण करते हैं, इसलिए लोगों के प्रिय पात्र हैं। उनकी बातों में कुछ रस है, जो प्रतिपक्षियों को भी आकृष्ट कर लेता है।

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