धर्मराज व्रत भी कहा जाता है वैशाखी पूर्णिमा को, भगवान बुद्ध के लिए भी है यह खास; जानिए यह क्यों कहलाता है सत्य विनायक

DELHI (MR) : हिंदी साल का दूसरा माह है वैशाख। इस माह के पूर्णिमा को वैशाखी पूर्णिमा कहा जाता है। शास्त्रों में इस दिन दान-धर्म करने की महत्ता को बताया गया है। इस दिन क्या नहीं करना है इसके बारे में पौराणिक​ किंव​दंतियों में कहा गया है। इतना ही नहीं, इस दिन को ही बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है। बिहार में आज के दिन ही भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था।

यह भी मान्यता है कि बुद्ध पूर्णिमा पर वातावरण में विशेष ऊर्जा आ जाती है। इस दिन चंद्रमा पूर्णिमा पृथ्वी और जल तत्व को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है। चंद्रमा पूर्णिमा तिथि के स्वामी माने जाते हैं। ऐसे में बुद्ध पूर्णिमा के दिन हर तरह की मानसिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है।

वैशाख पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने का काफी महत्व है। इससे पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है। आज के दिन भगवान विष्णु की भी पूरे विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। इस दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म कार्य किये जाते हैं। माना जाता है कि इस दिन स्नान, दान और पूजा-पाठ करने से सारे कष्ट दूर होते हैं। यही कारण है कि बुद्ध पूर्णिमा का दिन बहुत ही पवित्र और फलदायी माना जाता है।

लेकिन, वैशाखी पूर्णिमा को कई और नाम हैं। इसे सत्य विनायक पूर्णिमा और धर्मराज व्रत भी कहा जाता है। यह पूर्णिमा दान-धर्मादि के अनेक कार्य करने के लिए बड़ी ही पवित्र तिथि है। इस दिन गरीबों में अन्न, वस्त्र, टोपी, जूते-चप्पल, छाते, छाछ या शर्बत, सत्संग की किताबें आदि के वितरण करने से पुण्य मिलता है। चूंकि अब डिजिटल युग का समय है, इसलिए मित्रों को सत्संग की वीसीडी, डीवीडी, मेमोरी कार्ड आदि भी भेंट में दे सकते हैं। इस दिन यदि तिलमिश्रित जल से स्नान कर घी, शर्करा और तिल से भरा हुआ पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से अग्नि में आहुति दें अथवा तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल के दीपक जलाएं, जल और तिल से तर्पण करें अथवा गंगादि में स्नान करें तो सब पापों से निवृत्त हो जाते हैं। यदि वैशाखी पूर्णिमा पर एक समय भोजन करके पूर्ण-व्रत करें तो सब प्रकार की सुख-संपदाएं और श्रेय की प्राप्ति होती है

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