
PATNA (RAJESH THAKUR) : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर कांग्रेस की भी राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गयी हैं। बिहार में प्रभारी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक को बदल दिया गया। फायर ब्रिगेड कहे जाने वाले बिहार के युवा नेता कन्हैया कुमार को एक्टिव कर दिया गया है। वे राज्य के विभिन्न जिलों की यात्रा कर रहे हैं। जातीय समीकरण बैठाते हुए भूमिहार जाति से आने वाले अखिलेश सिंह को हटाकर दलित समाज से आने वाले कुटुंबा के विधायक राजेश कुमार को कांग्रेस ने अपना नया अध्यक्ष बनाया है। वहीं बिहार के नए प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ब्राह्मण समाज से आते हैं। अखिलेश सिंह के पद से छुट्टी किये जाने से कहीं भूमिहार समाज नाराज न हों, इसलिए उसी समाज से आने वाले कन्हैया कुमार को बिहार में बड़ी जिम्मेदारी दी गयी है।

दूसरी ओर, नए बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार समेत पार्टी की राज्य ईकाई से जुड़े तमाम बड़े नेताओं के साथ 25 मार्च को दिल्ली में वरीय नेता राहुल गांधी के साथ बैठक हुई। यह बैठक लगभग तीन घंटे तक चली। अंदरखाने की जानकारी के अनुसार, राहुल गांधी ने बिहार चुनाव को लेकर पार्टी के प्रभारी और अध्यक्ष समेत विधायकों और विधान पार्षदों से एक-एक बिंदु पर जानकारी ली। शाम से देर रात तक चली इस बैठक के बाद बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार (राम) ने फिलहाल यह साफ कर दिया कि कांग्रेस बिहार में महागठबंधन के वर्तमान स्वरूप के तहत ही विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। पार्टी ने यह भी साफ कर दिया कि कुछ मीडिया के लोगों की वजह से कन्फ्यूजन हो रहा था। सभी इस कन्फ्यूजन को दूर कर लें। कांग्रेस के इस निर्णय से विरोधियों को काफी निराशा हुई है।
दरअसल, कांग्रेस संगठन की मजबूती और उसके विस्तार को लेकर जिस तरह तेजी से निर्णय ले रही थी और एक झटके में अखिलेश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से छुट्टी कर दी गयी, उससे कुछ लोगों के मन में कन्फ्यूजन पैदा हो गया था। सियासी गलियारे में इसकी चर्चा तेज हो गयी थी कि कांग्रेस विधानसभा में अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। खास वर्ग के लोग ‘नैरेटिव’ सेट करने में जुट गए थे। वे पार्टी को सब्जबाग दिखा रहे थे कि कांग्रेस अकेले लड़ेगी तो बेहतर करेगी। मीडिया में भी इसे हवा दे रहे थे। सियासी गलियारे में यह भी चर्चा होने लगी कि बिहार में कांग्रेस की कमान कन्हैया को दी जाएगी, लेकिन राजेश राम को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने ‘नैरेटिव’ सेट करने वालों की हवा निकाल दी और अब महागठबंधन के वर्तमान स्वरूप में ही पार्टी के शामिल रहने की बात कहकर ‘गॉसिप’ पर भी पूर्णविराम लगा दिया।
कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य बीजेपी को हराना है। इसके लिए कांग्रेस उन दलों और नेताओं से भी बात करेगी, जो भाजपा के खिलाफ खड़े हैं।
बता दें कि वर्तमान स्वरूप में बिहार महागठबंधन में राजद के अलावा कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं। बिहार में 2020 की लड़ाई को महागठबंधन की ओर से इन्हीं तीनों दलों ने मजबूती से चुनाव लड़ा था। साथ ही 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में यही तीन दल महागठबंधन में थे। इसका फायदा बिहार में उन दलों को मिला भी। 2020 में महागठबंधन बिहार में सरकार बनाते-बनाते रह गयी, जबकि लोकसभा चुनाव 2024 में 2019 की तुलना में महागठबंधन को 8 सीटें अधिक आयीं। दिल्ली में कल रात हुई बैठक के निर्णय से यह साफ हो गया कि बिहार में कांग्रेस अपनी लड़ाई राजद के साथ मिलकर लड़ेगी। पार्टी का मुख्य उद्देश्य बीजेपी को हराना है। इसके लिए कांग्रेस उन दलों और नेताओं से भी बात करेगी, जो भाजपा के खिलाफ खड़े हैं। इसके लिए पार्टी के नेता पूर्णिया सांसद पप्पू यादव और जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर से भी इस विषय पर बात करेगी।

सियासी पंडितों की मानें तो संभव है कि टिकट बंटवारे के समय कुछ ‘अदृश्य शक्तियां* एक बार फिर से नैरेटिव सेट करके कांग्रेस पर प्रेशर बनाएगी कि उसे बिहार में अपनी ताकत पर चुनाव लड़ना चाहिए। दरअसल, कांग्रेस के अलग लड़ने से चुनाव में NDA के नाम पर भारतीय जनता पार्टी को सीधा फायदा होगा और राष्ट्रीय जनता दल को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। सियासी पंडितों का यह भी मानना है कि कांग्रेस यदि नहीं संभली और सबक नहीं ली तो वह दिल्ली की तरह बिहार में भी डूबेगी। ओवर कान्फिडेंस के चलते ही उसे महाराष्ट्र में भारी झटका लगा और हरियाणा की सत्ता हाथ में आते-आते रह गयी। दिल्ली में आप से गठबंधन नहीं करने की वजह से ही वहां भाजपा सत्ता में लौटी है। बहरहाल, दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र की हार के बाद कांग्रेस थोड़ी सजग हुई है और वह इस बार बिहार में समय रहते सही फैसले ले रही है। यदि इसमें थोड़ी-सी भी चूक हुई और सीटों को लेकर मामला नहीं बना तो चुनाव के बाद कांग्रेस हाथ मलती रह जाएगी। हां, राजद और वामदलों को भी समझदारी से काम लेना होगा और उन्हें भी अड़ियल रवैया से बचना होगा।