पौयला बोइशाख में कलाकारों ने अद्भुत समां बांधा, बसंत को तृषा ने अपने परफॉर्मेंस से जीवंत कर दिया

PATNA (MR)। बंगाली नववर्ष को लेकर 13 अप्रैल को पौयला बोइशाख कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके तहत स्थानीय रवींद्र भवन में नोबेल पुरस्कार विजेता गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर की अमर नृत्य नाटिका ‘बोसोंतो’ की भव्य प्रस्तुति की गयी। इस नृत्य नाटिका के जरिए कलाकारों ने ऋतु का सौंदर्य बोध कराया।

इसमें कलाकार तृषा और अभिकल्पना कालवृक्षम सहित उसके साथी कलाकारों ने ‘बोसोंतो’ को मंच पर जीवंत कर दिया। कलाकारों ने कार्यक्रम के दौरान मंच पर लाइव म्यूजिक और गायन पर ताल से ताल मिलाकर शानदार नृत्य कला पेश किया। दरअसल, पौयला बोइशाख न केवल बसंत ऋतु के सौंदर्य और उल्लास का उत्सव है, बल्कि यह नववर्ष के आगमन पर नये जीवन, प्रेम और चेतना का प्रतीक भी है।

नृत्य नाटिका में बसंत के जीवंत रूप को दर्शाया गया है। इसके तहत कोयल की आवाज, आम्र मंजर से आनेवाले आम, पलाश के फूल, सुबह की ठंडी हवाएं, पुष्प आदि के आगमन को दिखाया गया। कविगुरु की कालजयी रचना ‘बोसोंतो’ मूलतः ऋतुराज बसंत की विदाई की कल्पना पर आधारित नृत्य नाटिका है, जिसमें प्रकृति के सुंदर, मनमोहिनी और आकर्षक रूप का चित्रण एक राजा और एक कवि के वार्तालाप पर परिकल्पित है।

भूमिकाओं में सूत्रधार के रूप में कवि का सशक्त अभिनय डॉ. रंजन सिन्हा तो राजा का प्रभावशाली अभिनय जॉयदीप मुखर्जी ने निभाया। कलाकार तृषा ने अपनी अद्वितीय अभिव्यक्ति और नृत्य से इस रचना में रंग भर दिया। नृत्य-प्रस्तुतियों की कोरियोग्राफी सुप्रसिद्ध नृत्यांगना सुदीपा बोस ने की। संगीत में संजय भट्टाचार्य और गायिकी में सुब्रोतो बैनर्जी ने अद्भुत समां बांधा। इस प्रस्तुति में ज्योति प्रकाश चक्रवर्ती, जयदीप चोंगदार, नारायण चक्रवर्ती आदि का भी अहम रोल रहा। रूपसज्जा अशोक कुमार घोष और चंदना घोष की ओर से किया गया।