Rajesh Thakur l Patna : बिहार की चुनावी कथा में चलिए बिहार की झाझा सीट का करते हैं अवलोकन। 1952 से यह क्षेत्र सियासी गलियारे में हॉट सीट बना हुआ है। इसका नाम झाझा क्यों और कैसे पड़ा, इस पर फिर कभी, लेकिन यहां से दो शिवनंदन बाबू की सियासत लोकतंत्र की काफी बेहतर तस्वीर पेश करती है, एक थे शिवनंदन झा और दूसरी लोकप्रिय हस्ती थे शिवनंदन यादव। दोनों दो-दो बार विधायक रहे थे। शिवनंदन यादव की सियासी विरासत को अब उनके पुत्र डॉ रविंद्र यादव समृद्ध कर रहे हैं। डॉ रविंद्र यादव यहां से तीन बार विधायक रहे हैं। दो बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते हैं और एक बार विधान पार्षद भी बने हैं। 2025 की लड़ाई के लिए वे एक बार फिर कमर कस रहे हैं और पूरी मुस्तैदी से इसमें लगे हुए हैं। झाझा से वर्तमान विधायक एनडीए कोटे से जदयू के दामोदर रावत हैं। जातीय समीकरण मजबूत होते हुए भी राजद झाझा से विधायक का चुनाव आज तक नहीं जीत पाया है। राजद यहां से लड़ने की तैयारी कर रहा है तो कांग्रेस अपनी खोयी प्रतिष्ठा को फिर से वापस करने की रणनीति में जुटी हुई है। ऐसे में 2025 की चुनावी लड़ाई झाझा में काफी रोचक होने वाली है।


अब थोड़ा फ्लैशबैक चलते हैं। दरअसल, झाझा विधानसभा क्षेत्र समाजवाद की धरती रहा है। इसी वजह से यहां का चुनाव हर बार रोचक रहा है। यह क्षेत्र वर्ष 1952 में ही अस्तित्व में आ गया था और 2008 के परिसीमन में यह क्षेत्र बरकरार रहा। झाझा में सत्ता की धुरी पांच कद्दावर नेताओं के बीच घूमती रही। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह यहां से तीन बार विधायक चुने गए, जबकि बिहार के तत्कालीन मंत्री शिवनंदन झा सबसे अधिक चार बार विधायक बने। इन्हें पटकनी देने वाले स्वतंत्रता सेनानी रहे शिवनंदन यादव दो बार चुने गए, जबकि इनके बेटे डॉ रविंद्र यादव भी तीन बार विधायक चुने गए। ये दो बार चुनाव और एक बार उपचुनाव में सफल रहे। दो बार कांग्रेस और एक बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे। इनके पिताजी कांग्रेस के टिकट पर दोनों बार विधायक बने थे। झाझा में भाजपा को एंट्री डॉ रविंद्र यादव ने ही दिलायी थी। सियासी पंडितों की मानें तो डॉ रविंद्र यादव की भी लंबी राजनीतिक पारी रही है। वे तीन बार विधायक के अलावा एक बार विधान पार्षद भी रहे। खास बात कि वे लालू यादव के सहयोग से विधान परिषद पहुंचे थे, लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि वही लालू यादव की पार्टी राजद आज तक झाझा से चुनाव नहीं जीत सका है। एक बार यहां से बड़े चेहरे में श्री कृष्ण सिंह चुनाव जीते थे।
झाझा की धरती से रच-बस गए डॉ रविंद्र यादव ने एक बार फिर यहां के चुनाव मैदान में उतरने का मन बना लिया है। वे पूरी मुस्तैदी से टिकट की जुगाड़ में जुट गए हैं। दरअसल, यह सीट एनडीए के घटक दल जदयू कोटे की है और इसके सीटिंग विधायक दामोदर रावत हैं। 2025 की लड़ाई में एनडीए से दावेदार तो बहुत हैं, लेकिन टिकट मिलना उन्हीं को लगभग तय है। हाँ, अंतिम समय में कुछ फेरबदल हो जाए तो अलग बात है। दूसरी ओर यहां का सियासी सिनेरियो हमेशा से महागठबंधन का रहा है, इसके बाद भी यहां से आज तक लालू यादव की पार्टी राजद चुनाव नहीं जीत पाया है। पिछले ढाई दशक से इस सीट पर एनडीए का कब्जा है। महागठबंधन का जब से गठन हुआ है, तब से हर चुनाव में लगता है कि राजद जीत जाएगा, लेकिन हर बार उसे विफलता हाथ लगती है। हर बार प्रत्याशी बदले जाते हैं, फिर भी पार्टी सफल नहीं हो पाती है। एक बार फिर राजद प्रत्याशी बदलने की जुगत में लग गया है। कहा जा रहा है कि यहां से पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव अपनी बेटी दिव्या प्रकाश के लिए लगे हुए हैं। हालांकि, राजद के अंदरखाने की मानें तो जयप्रकाश यादव पर खुद ही लड़ने का जोर पर रहा है। इनके अलावा राजद नेता राजीव उर्फ गुड्डू यादव, डॉ. नीरज साह भी अपने-अपने जुगाड़ में लगे हुए हैं। सूत्रों की मानें तो जमुई से लड़ने वाले जय प्रकाश के भाई पूर्व मंत्री विजय प्रकाश की भी नजर झाझा पर है।


इधर, तीन बार विधायक रहे डॉ रविंद्र यादव ने भी चुनाव लड़ने का मन बनाया है। वे कांग्रेस से टिकट की जुगाड़ में लगे हुए हैं। इसे लेकर वे पिछले दिनों दिल्ली भी गए थे। सियासी पंडितों की मानें तो रविंद्र यादव का सभी जातियों पर अच्छी पकड़ है। तभी वे दो बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा के टिकट पर विजयी हुए थे। राजद और जदयू से खार खाये लोग खुलकर डॉ रविंद्र यादव के साथ हैं। बता दें कि 2020 के चुनाव में जदयू के दामोदर रावत इन्हीं की वजह से चुनाव जीते थे। उस चुनाव में राजद उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद महज 1679 वोटों से हारे थे, जबकि डॉ रविंद्र यादव को 11762 वोट मिले। लोगों का मानना है कि यदि रविंद्र यादव चुनाव मैदान में नहीं रहते तो संभव था कि राजद की राह आसान रहती। बहरहाल एक बार चुनाव लड़ने की घोषणा कर डॉ रविंद्र यादव ने जदयू के साथ ही राजद की भी टेंशन बढ़ा दी है। हालांकि, वे कांग्रेस से टिकट चाह रहे हैं। सियासी पंडित भी मानते हैं कि राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा के बाद बिहार में कांग्रेस का जनाधार बढ़ा है और यदि यह सीट उसके कोटे में जाती है तो यहां ढाई दशक का रिकॉर्ड टूट सकता है और कांग्रेस की खोयी प्रतिष्ठा वापस लौट सकती है। यही वजह है कि कांग्रेस ने झाझा पर भी दावा ठोका है। इन सबके बीच प्रशांत किशोर की पार्टी किसका खेल बिगाड़ेगी, कहना मुश्किल है।