Mukhiya Views: तेजस्वी यादव का क्या होगा, मनीष सिसोदिया वाला हाल तो नहीं ?

DELHI (APP NEWS) : तेजस्वी यादव का क्या होगा ? क्या जांच एजेंसियां गिरफ्तार करेंगी ? अथवा केवल अपने शिकंजे को और अधिक टाइट करेगी ? बिहार के सियासी गलियारे में कुछ ऐसे ही सवाल इन दिनों कौंध रहे हैं। दरअसल, बिहार के डिप्टी CM तेजस्वी यादव से 25 मार्च को सीबीआई पूछताछ करेगी। इसके लिए उन्हें सीबीआई की ओर से समन दिया गया था। इस पूछताछ को रोकने के लिए वे दिल्ली हाई कोर्ट गए हुए थे। लेकिन, कोर्ट से उन्हें राहत नहीं मिली। तेजस्वी यादव की इस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद पूछताछ के लिए 25 मार्च की तारीख मुकर्रर की कई है। कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद उनके पास पूछताछ के लिए तैयार होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। हालांकि, सीबीआई ने फिलहाल कहा है कि वह अभी तेजस्वी यादव को गिरफ्तार नहीं करेगी…? 

पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो इसका साफ संकेत है कि भले ही सीबीआई अभी गिरफ्तार नहीं करे, लेकिन भविष्य में इसे लेकर आशंका बनी रहेगी। वहीं कानून के एक्सपर्ट भी मानते हैं कि तेजस्वी यादव को इस मामले को हल्के में नहीं लेना चाहिए। फिर यह केवल सीबीआई का मामला नहीं है। सीबीआई के साथ ईडी भी पूरी मुस्तैदी के साथ लगी हुई है। हालांकि तेजस्वी यादव कई दफे कह चुके हैं कि हमलोग लोग केंद्र की भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए पूरे देश में अभियान चला रहे हैं, इसलिए 2024 और 2025 तक जांच एजेंसियों की छापेमारी इस तरह होती रहेगी। कभी उनके यहां सीबीआई आएगी तो कभी ईडी वाले आएंगे और कभी आईटी वाले छापेमारी करेंगे। इन सबके बीच पॉलिटिकल एक्सपर्ट इतना तो मान रहे हैं कि बेशक तेजस्वी यादव की मुश्किलें जरूर बढ़ी हैं। और इसे देखते हुए इन दिनों उनके समर्थक भी बयानबाजी से बच रहे हैं। 

वर्तमान में सबसे बड़ा मामला लैंड फॉर जॉब स्कैम का है। इस मामले की जांच कर रही सीबीआई ने तेजस्वी यादव को तीन बार समन जारी कर पूछताछ के लिए बुलाया था। उन्होंने सीबीआई के समन के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट से सीबीआई के समन को रद्द करने की मांग की थी। इसका सीबीआई ने विरोध किया था। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सीबीआई के समन को खारिज करने की मांग ठुकराते हुए उन्हें 25 मार्च को जांच एजेंसी के सामने पेश होने के लिए कहा। हालांकि, तेजस्वी यादव के लिए थोड़ी राहत की बात यह रही कि सुनवाई के दौरान सीबीआई ने कोर्ट में आश्वासन दिया कि इस मामले में इस महीने तेजस्वी यादव की गिरफ्तारी नहीं होगी। मतलब साफ है कि आगे के महीने में कुछ भी हो सकता है और ऐसे में सबकी नजर 25 मार्च पर लगी है। उस दिन इस बात से संकेत मिल सकते हैं कि सीबीआई कितने घंटे पूछताछ करती है ? कितने सवाल किये जाते हैं ? सवाल कैसे-कैसे रहते हैं ? फिर मीडिया के सामने उनकी बॉडी लैंग्वेज कैसी रहती है ?  

तेजस्वी यादव की ओर से 16 मार्च को कोर्ट में कहा गया था कि सीआरपीसी की धारा 160 के तहत नोटिस केवल स्थानीय अधिकार क्षेत्र में ही जारी किया जा सकता है। सीबीआई उन्हें दिल्ली में पेश होने के लिए नोटिस जारी कर कानून का घोर उल्लंघन कर रही है, जबकि वे पटना में रहते हैं। इतना ही नहीं, तेजस्वी के वकील ने कोर्ट में यह भी कहा था कि उन्हें तीन बार समन जारी कर दिल्ली में पूछताछ के लिए बुलाया गया है, जबकि वे पटना में रहते हैं। वे गर्भवती पत्नी को देखने के लिए एक दिन के लिए दिल्ली गए थे। लेकिन, सीबीआई ने अपनी दलील में कुछ नहीं सुना। जब विधानसभा के बजट सत्र चलने का तर्क दिया गया तो सीबीआई की ओर से कहा गया कि शनिवार को विधानसभा का सत्र नहीं चलता है। ऐसे में वे शनिवार को आ सकते हैं। इसके बाद ही कोर्ट ने 25 मार्च को तेजस्वी यादव को सीबीआई दफ्तर में पेश होने के लिए कहा। पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो इसका साफ संकेत यह भी है कि जांच एजेंसियां तेजस्वी यादव को लेकर काफी गंभीर हैं।

हालांकि, यह तो हुई प्रशासनिक महकमे की बात। लेकिन, पॉलिटिकल एक्सपर्ट इसे सियासी चश्मे से भी देख रहे हैं। दरअसल, जांच एजेंसियां जिस तरह पुराने-पुराने केसों को खंगाल रही हैं और देश भर के विपक्षी नेताओं के यहां छापेमारी कर रही हैं, उनसे साफ संकेत मिलता है कि बीजेपी चुनाव के पहले तक उन सारी रणनीतियों को अमलीजामा पहना देना चाहती, जो उसकी चुनावी राह में बाधा बनकर खड़ी है। इसमें मामले में वह किसी तरह की कोताही करना नहीं चाहती है। दरअसल, बीजेपी के सामने फिलहाल दो बड़ी चुनौती है। पहली चुनौती यह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को तीसरी बार पीएम पद पर पहुंचाना और दूसरी बड़ी चुनौती है, बिहार में बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री होना। यानी बिहार में अपने दम पर सत्ता हासिल करना। और यह भी सच है कि बीजेपी के नेता बिहार में तभी सीएम की कुर्सी पर बैठ सकते हैं, जब उसकी राह से नीतीश कुमार हट जाएं और यह तभी संभव है, जब या तो नीतीश कुमार फिर से एनडीए में आ जाएं अथवा उनकी ताकत को खत्म कर दिया जाए।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट के अनुसार, बीजेपी अपनी स्ट्रैटजी के अनुरूप भी अपना कदम बढ़ा रही है। वह नीतीश कुमार को पहले तो एनडीए में मिलाना चाह रही है, ऐसी स्थिति नहीं होने पर उन्हें सियासी रूप से पंगु बना देना चाह रही है। यानी उनकी अगल-बगल के ‘सियासी चक्र’ को खत्म कर देना। इसी रणनीति के तहत बीजेपी स्लो मोशन में ‘ऑपरेशन लोटस’ का दांव चल रही है। उपेंद्र कुशवाहा से लेकर पूर्व सांसद मीना देवी का जेडीयू से अलग होना, नीतीश कुमार के सारे विरोधियों को ‘वाई-जेड’ सुरक्षा प्रदान करना, लालू फैमिली से जुड़े लोगों के ठिकानों पर जांच एजेंसियों की ताबड़तोड़ छापेमारी, नीतीश कुमार को बीजेपी की ओर से फोन किया जाना और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का लगातार बिहार आना, ये सब इसी के संकेत माने जा रहे हैं। इन सबमें सबसे अधिक अहम है नीतीश कुमार को किसी न किसी बहाने फोन किया जाना और तेजस्वी यादव को जांच एजेंसियों के जरिए घेरना। 

दरअसल, 2017 में जांच एजेंसियों ने लालू यादव और तेजस्वी यादव के खिलाफ आइआरसीटीसी मामले में लगातार छापेमारी की थी। पटना समेत दिल्ली के ठिकानों पर भी जांच एजेंसियों का सर्च आपरेशन चलाया गया था। उस समय भी नीतीश कुमार महागठबंधन के ही हिस्सा थे। जांच एजेंसियों की छापेमारी के पहले बीजेपी के वरीय नेता सुशील मोदी तेजस्वी यादव पर बेनामी संपत्तियों को लेकर ताबड़तोड़ हमले कर रहे थे। इसके बाद ही नीतीश कुमार ने यूटर्न लेते हुए एनडीए में आ गए थे। एक बार फिर उसी तरह का माहौल बिहार में बन गया है। सुशील मोदी ने फिर से मोर्चा संभाल लिया है। 20 मार्च को वे मीडिया के सामने तेजस्वी यादव की करोड़ों की संपत्ति गिना रहे थे। 2017 और 2023 में यही अंतर है कि उस समय आइआरसीटीसी स्कैम का मामला था और अभी लैंड फॉर जॉब स्कैम के जरिए खंगाला जा रहा है। इसे लेकर 6 मार्च को पटना में राबड़ी देवी और 7 मार्च को दिल्ली में लालू यादव से सीबीआई ने घंटों पूछताछ की। कहा जा रहा है कि मीसा भारती से भी पूछताछ हो चुकी है। खास बात कि लैंड फॉर जॉब स्कैम में 26 नेम्ड आरोपियों में तेजस्वी यादव का नाम नहीं है, इसके बाद भी वे निशाने पर हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो जिस तरह 10 मार्च को लालू फैमिली से जुड़े 24 ठिकानों पर ईडी का एक साथ सर्च आपरेशन चला, उससे तो साफ पता चलता है कि नीतीश कुमार और लालू यादव की बाउंडिंग अभी काफी स्ट्रांग हैं और यही मजबूती बीजेपी के लिए सबसे टेंशन की वजह है। 

इधर, कानून के जानकार और पटना हाईकोर्ट के वरीय वकील देव प्रकाश सिंह कहते हैं कि जांच एजेंसियों की कार्रवाई को तेजस्वी यादव को हल्के में नहीं लेना चाहिए और उन्हें इसके क्वैशिंग को लेकर कोर्ट नहीं जाना चाहिए। वे कहते हैं कि इनकी संपत्ति का मामला हो या फिर इनके पिताजी संपत्ति का मामला हो, क्लियर तो करना ही चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि आखिर यह संपत्ति कहां से आयी है। उन्हें यह संपत्ति गिफ्ट में मिली है या पैतृक संपत्ति है, यह बतानी चाहिए। सही-सही बताने पर कुछ नहीं होता है, लेकिन इसमें फर्जीवाड़ा नहीं होना चाहिए। ऐसे में अब सबकी नजर 25 मार्च पर टिकी हुई है। हालांकि, सीबीआई ने पहले ही कह दिया है कि वह फिलहाल तेजस्वी यादव को गिरफ्तार नहीं करेगी। लेकिन मामला बढ़ेगा तो फिर ईडी की कार्रवाई किस तरह होगी, इस पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है। यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी वेट एंड वाच की भूमिका में हैं। बहरहाल, दिल्ली के तत्कालीन डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया का उदाहरण सामने है और इसी से आरजेडी के लोग काफी चिंतित हैं।

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