PATNA / DELHI (MR) : बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देशभर में जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना कराने की मंजूरी दे दी है। यह कदम सामाजिक न्याय, समावेशी विकास और नीति निर्माण में मील का पत्थर साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश में सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा को नया रूप देगा।
जातिगत जनगणना बन रहा था मुद्दा
जातिगत जनगणना की मांग दशकों से विभिन्न राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों द्वारा उठायी जा रही थी। खासकर बिहार जैसे राज्यों में, जहां जातीय समीकरण सामाजिक और राजनीतिक संरचना का अहम हिस्सा हैं, इस फैसले को एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है। केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह जनगणना न केवल जातियों की संख्या, बल्कि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य जैसे पहलुओं पर भी व्यापक डेटा एकत्र करेगी। दरअसल, बिहार में अपने दम पर जातीय सर्वे होने के बाद से विपक्ष इसे मुद्दा बना रहा था और राहुल गांधी इसे लेकर केंद्र सरकार से लगातार मांग कर रही थी। वहीं, राजद नेता लालू यादव और बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठा रहे थे। बता दें कि बिहार में जिस समय जातीय गणना सर्वे हुआ था, उस समय यहां महागठबंधन की सरकार थी।

सामाजिक विकास को मिलेगी गति
जातिगत जनगणना के आंकड़े सरकार को उन समुदायों की पहचान करने में मदद करेंगे, जो अभी भी विकास की मुख्यधारा से वंचित हैं। इससे शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं और आरक्षण जैसी नीतियों को और लक्षित और प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा। सियासी पंडितों की मानें तो यह जनगणना समावेशी विकास का आधार बनेगी। इससे हर समुदाय को उसका हक मिलेगा।
बिहार में उत्साह, राजनीतिक हलचल तेज
बिहार में इस फैसले का जोरदार स्वागत हो रहा है। कई राजनीतिक नेताओं ने इसे सामाजिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम करार दिया है। सियासी पंडितों के अनुसार, यह फैसला बिहार के उन समुदायों को सशक्त करेगा, जो लंबे समय से उपेक्षित हैं। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम चुनावी रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है, क्योंकि जातीय आंकड़े संसाधनों के बंटवारे और आरक्षण नीतियों को प्रभावित करेंगे।

कैसे होगी जनगणना?
केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि जातिगत जनगणना को नियमित जनगणना के साथ एकीकृत किया जाएगा। इसके लिए एक विशेष डिजिटल प्लेटफॉर्म और प्रशिक्षित कर्मचारियों की टीम तैयार की जाएगी। गोपनीयता और डेटा सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे। सरकार अगले कुछ महीनों में इसकी विस्तृत रूपरेखा और समय सीमा जारी करेगी। बहरहाल, जातिगत जनगणना के परिणाम न केवल नीति निर्माण को दिशा देंगे, बल्कि सामाजिक समरसता को भी बढ़ावा दे सकते हैं। यह कदम उन समुदायों के लिए उम्मीद की किरण है, जो लंबे समय से अपनी आवाज को मुख्यधारा तक पहुंचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बिहार सहित पूरे देश में इस फैसले को सामाजिक विकास के एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।