DELHI / PATNA (APP) : दिल्ली की कुर्सी। सही समझे। दिल्ली की कुर्सी के लिए तो यह मारामारी हो रही है। दरअसल, दिल्ली की कुर्सी पर 2014 से नरेंद्र मोदी काबिज हैं। उनसे फरियाने के लिए नीतीश कुमार ने कमर कस ली है। उनके इस सियासी अभियान में लालू यादव फुल सपोर्ट कर रहे हैं। इसे लेकर 25 सितंबर को दिल्ली में लालू यादव और नीतीश कुमार की सोनिया गांधी से मुलाकात भी हो गयी। मतलब लालू-नीतीश का ज्चाइंट ऑपरेशन शुरू हो गया है। तो क्या लालू मना पाएंगे कांग्रेस को ? सोनिया गांधी क्या मान जाएंगी ? नीतीश की राह आसान है ? सवाल तो कई हैं ? फिलहाल जवाब किसी के पास किसी भी सवाल का नहीं है। बस, कयासबाजी तेज है। लेकिन इतना तो है कि लालू किंग मेकर के रोल में आ गए हैं। तो क्या लालू किंग मेकर बन पाएंगे, यह बड़ा सवाल है ?
नीतीश कुमार पिछली दफा अकेले ही दिल्ली मिशन पर निकले थे। लेकिन, इस बार लालू के साथ ही तेजस्वी यादव भी नीतीश कुमार के साथ रहे। इसका साफ मतलब है कि नीतीश कुमार के इस मोदी हटाओ मिशन में लालू का सपोर्ट पूरे मन से मिल रहा है। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस क्या करेगी ? फिलहाल, कांग्रेस संगठन चुनाव के नाम पर कुछ दिनों के लिए इस मामले को टाल दिया है। हालांकि, इस मुलाकात को लेकर बिहार से लेकर दिल्ली तक की सियासत में हलचल मची हुई थी। कहा जाता है, सोनिया गांधी से लालू-नीतीश की लगभग 45 मिनट बात हुई। कई सियासी मुद्दों के बीच 2024 में बीजेपी को किस तरह से हटाया जाए, इस पर भी मनन हुआ। लेकिन, सोनिया गांधी ने संगठन चुनाव को लेकर इस पर फिर से मिलने की बात कही है।
बता दें कि इस बार कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लोकतांत्रिक नियमों से होगा। इसके लिए अशोक गहलोत और शशि थुरूर दौड़ में सबसे आगे थे। हालांकि, इसके बाद से ही राजस्थान में सियासी संकट आ गया है और वहां मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए मारामारी मची हुई है। लेकिन, इसके साथ ही यह सवाल भी छोड़ गया कि जब मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए इतनी अधिक मारामारी हो रही है, तो क्या गारंटी है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए ऐसा नहीं होगा? फिलहाल, सोनिया गांधी संगठन चुनाव के नाम पर सेफ जोन में चली गयी हैं और उन्होंने कह दिया है कि नए राष्ट्रीय अध्यक्ष जो बनेंगे, वही निर्णय लेंगे कि 2024 में नरेंद्र मोदी से फरियाने के लिए पार्टी क्या करेगी।
सोनिया से मिलने के बाद जब लालू यादव और नीतीश कुमार बाहर निकले तो उन्होंने मीडिया को भी इसकी जानकारी दी। लालू यादव ने कहा कि हम सब एक हैं। सोनिया जी से हमने आग्रह किया आप सबसे बड़ी पार्टी हैं। आप सबको बुलाइए। इकट्ठा होकर हम सब बात करें और भाजपा को विदा करें। इस पर सोनिया ने कहा है कि कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है। इसके बाद आप दोनों उनके साथ भी मीटिंग कीजिएगा। इस पर हमने सोनिया गांधी से कहा कि कांग्रेस का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई भी बने, लेकिन आपको भी मीटिंग में रहना होगा। लालू ने मीडिया से यह भी कहा कि हमें भाजपा को हराने के लिए सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाना होगा। भाजपा को बिहार से विदा कर दिया गया है और अब देश से उसकी विदाई की बारी है। देश को बचाना है तो भाजपा को हर हाल में हटाना होगा।
इधर सियासी पंडितों की मानें तो कांग्रेस के सांगठनिक चुनाव के नाम पर कुछ दिनों के लिए यह मामला सोनिया गांधी ने टाल दिया है। नए राष्ट्रीय के चुनाव में कम से कम एक पखवारे का टाइम तो लगेगा ही लगेगा। ऐसे में जो भी बातें अब फाइनल होंगी, वह नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के बनने के बाद ही होगी। कहा तो यह भी जा रहा है कि सोनिया गांधी ने यह भी टास्क दिया है कि सभी विपक्षी नेताओं को भी वे दोनों एकजुट करें। दरअसल, अभी तक ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, केसीआर समेत कई नेताओं ने कांग्रेस के साथ अपने गठबंधन को आगे ले जाने पर सहमति नहीं दी है। यहां तक कि इंडियन नेशनल लोकदल के ओमप्रकाश चौटाला ने भी कांग्रेस के नाम पर कुछ नहीं बोला है। नीतीश कुमार जब हरियाणा के फतेहाबाद में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए, तो उन्होंने कहा कि विपक्ष की मुहिम में सीपीआई, सीपीएम और माले के साथ ही कांग्रेस को भी शामिल करना होगा। हालांकि, नीतीश कुमार ने ओमप्रकाश चौटाला से आग्रह करते हुए यह भी कहा कि आप तो मेरी ‘बतवा’ को मानिएगा नहीं, लेकिन इस पर विचार जरूर कीजिए। यदि ऐसा होता है तो 2024 में बीजेपी की हमलोग केंद्र से उखाड़ फेंकेंगे। बता दें कि नीतीश कुमार की केसीआर और अरविंद केजरीवाल से मुलाकात हो गयी है, जबकि ममता बनर्जी से मुलाकात बाकी है।
कांग्रेस की रणनीति क्या होगी ? नरेंद्र मोदी से फरियाने में कांग्रेस क्या विपक्ष को साथ देगी ? इस पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि कांग्रेस को हर हाल में पॉजिटिव सोचना होगा और देशहित में फैसला लेना होगा। हालांकि, कांग्रेस अब व्यवहारिक बातों को समझने लगी है। पुरानी सोच से पार्टी बाहर निकल रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में भी यह सब दिख रहा है। अब नेहरू-गांधी परिवार से इतर अध्यक्ष को चुनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। राहुल गांधी को इस बात का अंदाजा है कि कांग्रेस पार्टी फिलहाल किस स्थिति में है और इससे उबरने के लिए किस तरह के चैलेंज उनके सामने हैं। ऐसे में अब वो लगभग इस बात को मान लिये हैं कि जब तक हाफ सीट नहीं ला पाएंगे, पीएम पद पर चैलेंज करना मुनासिब नहीं होगा। जब तक कांग्रेस को 125 या 150 सीटें नहीं आएंगी वे प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी नहीं करेगी। ऐसे में नीतीश कुमार विपक्ष के लिए ऑक्सीजन के रूप में सामने आए हैं।
पॉलिटिकल पंडित यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार की इस पहल को अब कांग्रेस को भी समझने की जरूरत है और वे दिल्ली मिशन के पहले दौर में राहुल गांधी से भी मिल लिये हैं और अब लालू यादव की उपस्थिति में सोनिया गांधी से भी उनकी मुलाकात हो गयी है। इस मुलाकात के मायने को सियासी गलियारे में विपक्षी नेता समझ रहे हैं और इस मुलाकात से बीजेपी खेमे में भी बेचैनी बढ़ी हुई है। दरअसल, नीतीश कुमार अब बिहार से बाहर की पॉलिटिक्स में एक्टिव हो रहे हैं। नेशनल पॉलिटिक्स में उनकी पहचान तो पहले से है, क्योंकि नीतीश कुमार केंद्रीय कैबिनेट में कई बार शामिल हुए हैं। दिल्ली, झारखंड, मणिपुर, अरूणाचल प्रदेश, दादर नगर हवेली, दीव आदि राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में जेडीयू ने अपना संगठन भी खड़ा किया है। यहां तक मणिपुर और अरूणाचल प्रदेश में उनके कई विधायक जीते भी थे। यह अलग बात है कि उन विधायकों को बीजेपी ने अपने दल में मिला लिया। इसका भी बदला नीतीश कुमार को बीजेपी से लेना है।
बहरहाल, नीतीश कुमार के साथ अब लालू यादव खुलकर आ गए हैं। नरेंद्र मोदी के खिलाफ दोनों का ज्वाइंट ऑपरेशन शुरू हो गया है। यूपी में अखिलेश यादव का भी फुल सपोर्ट मिल रहा है। पिछले दिनों अखिलेश यादव और नीतीश कुमार का साथ वाला पोस्टर भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला भी लगभग-लगभग साथ ही हैं और शरद पवार भी नीतीश कुमार के समर्थन में फिलहाल दिख रहे हैं। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि इसे लेकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की रणनीति क्या बनती है, लेकिन पॉलिटिकल पंडित तो इतना जरूर मानते हैं कि यदि नरेंद्र मोदी से सच में कांग्रेस को फरियाना है तो विपक्ष के बाकी नेताओं की तरह उन्हें भी एक साथ और एक मंच पर आना होगा। कांग्रेस को हर हाल में समझौता करना होगा, वरना विपक्ष के बिखराव का नतीजा 2014 और 2019 में उनलोगों ने अच्छे से देख लिया है, फिर इस सिचुएशन में नरेंद्र मोदी से पंगा लेना आसान नहीं होगा।