लखीसराय विधानसभा क्षेत्र : भूमिहार के गढ़ में विजय सिन्हा को घेरने में जुटे राजद-कांग्रेस, बन रही यह रणनीति

Rajesh Thakur l Patna : बिहार विधानसभा चुनाव की डेट घोषित होने के बाद अब NDA और महागठबंधन की ओर से सीट शेयरिंग व उम्मीदवारों के नामों की घोषणा का इंतजार मतदाता कर रहे हैं। 10 अक्टूबर शुक्रवार से पहले चरण के लिए नामांकन की अधिसूचना भी जारी हो गयी है। हालांकि, कुछ सीट ऐसी भी हैं, जिन्हें मान लिया जाता है कि फलां सीट का उम्मीदवार तय है। ऐसी ही सीट है लखीसराय। यहां पहले चरण में यानी 6 नवंबर को मतदान है। यहां से सीटिंग विधायक व वर्तमान उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा का भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना तय है। वहीं महागठबंधन की ओर से यह सीट कांग्रेस कोटे की है। लेकिन सियासी सूत्रों के अनुसार, इस बार विजय सिन्हा को पटखनी देने के लिए महागठबंधन की ओर से बड़ी रणनीति बनायी जा रही है। इसमें राजद और कांग्रेस बड़ी भूमिका निभा रहा है। सियासी चर्चा की मानें तो लखीसराय को राजद अपनी झोली में लेना चाहता है और इसी जिले की दूसरी सीट सूर्यगढ़ा को कांग्रेस की झोली में देना चाहता है। सूर्यगढ़ा क्षेत्र की सियासी हलचल के बारे में तो हमने आपको इसी प्लेटफॉर्म मुखियाजी डॉट कॉम पर पढ़ा चुके हैं, अब आपको लखीसराय विधानसभा क्षेत्र की सियासी हलचल के बारे में पढ़ाते हैं और बताते हैं कि उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा को किस तरह एक रणनीति के तहत नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव घेरने की कोशिश कर रहे हैं।

लखीसराय में जनसंपर्क करते पूर्व विधायक फुलेना सिंह...

समाजवादियों की धरती रही है लखीसराय : दरअसल, लखीसराय शुरू से ही समाजवादियों की धरती रही है। पूरे बिहार की तरह यहां भी यादव और मुस्लिम मतदाता राजद के परंपरागत वोट बैंक माने जाते हैं। इसका फायदा उस समय भी यहां के राजद उम्मीदवार को मिला है, जब पूरे राज्य में लालू यादव के खिलाफ लहर चल रही थी। वाकया 2005 के अक्टूबर-नवंबर में हुए बिहार विधानसभा चुनाव का है। उस समय बिहार में लालू यादव के खिलाफ माहौल था। लेकिन तब फुलेना सिंह राजद के टिकट पर चुनाव जीते थे। उस समय लखीसराय से कहलगंव तक में राजद का कोई उम्मीदवार नहीं जीत पाया था। इसके ठीक 10 माह पहले हुए चुनाव में फुलेना सिंह कड़ी टक्कर में महज 1448 वोट से चुनाव हार गये थे। भूमिहार जाति से आनेवाले फुलेना सिंह को अपनी जाति के अलावा यादव और मुस्लिम का थोक वोट मिला था। लेकिन, 2010 में यहां से विपक्ष की गलत रणनीतियों और भाजपा के बढ़ते कद की वजह से राजद हार गया। इस तरह, भाजपा के विजय कुमार सिन्हा ने अपनी सीट मजबूती से वापसी की। उन्होंने राजद के सीटिंग विधायक फुलेना सिंह को 59620 वोटों के काफी बड़े अंतर से हराया। राजद को दूसरे स्थान पर रहते हुए भी महज 18837 वोट मिले। विपक्ष की गलत रणनीति की वजह से ही 2015 में राजद और जदयू एक साथ रहते हुए भी भाजपा को पराजित नहीं कर सका। तब से विजय सिन्हा चुनाव जीतते आ रहे हैं। हालांकि, जीत का अंतर अब काफी घट गया है।

तो महागठबंधन जमा लेता कब्ज़ा : आंकड़े बताते हैं कि यदि विपक्ष मजबूती से एकजुट रहता तो 2020 में महागठबंधन इस सीट पर फिर से कब्जा जमा सकता था। लेकिन, इन वोटों को पूरी तरह एकजुट करने में वह नाकाम रहा। दरअसल, लगातार तीसरी बार जीत दर्ज करने वाले विजय सिन्हा को 2020 में 74212 यानी 38.2% वोट मिले थे, जबकि महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के उम्मीदवार अमरेश सिंह को 63729 यानी 32.8% वोट आए थे। जीत का अंतर महज 10483 का रहा था। जब आप 2020 के रिजल्ट पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि उस चुनाव में कुल 19 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें राजद से बगावत करते हुए फुलेना सिंह भी निर्दलीय के रूप में मैदान में थे। उन्हें कुल 10938 वोट मिले थे, जबकि जीत-हार का अंतर महज 10483 का रहा था। आंकड़े बताते हैं कि विपक्ष की एकजुटता नहीं रहने की वजह से सत्ता पक्ष को फायदा हुआ, वरना 2020 का समीकरण कुछ और होता। उस चुनाव में वोट का लीकेज भी खूब हुआ था। 2020 में तीसरे स्थान पर सुजीत कुमार रहे थे, जिसे निर्दलीय रहते हुए 11570 वोट मिले थे। इसी तरह, आधा दर्जन ऐसे उम्मीदवार थे, जिन्हें 2000 से 4000 तक वोट मिले थे।

पहली बार 1977 में हुआ था चुनाव : बता दें कि लखीसराय विधानसभा क्षेत्र पहली बार 1977 में बना था। उस चुनाव में यहां से जनता पार्टी के कपिलदेव सिंह विधायक निर्वाचित हुए थे। तब से इस सीट पर अब तक कुल 11 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें बीजेपी ने पांच बार जीत हासिल की है, वहीं जनता पार्टी और जनता दल को दो-दो बार तथा कांग्रेस और राजद को एक-एक बार जीत मिली है। कांग्रेस को 1980 तो राजद को 2005 के मध्यावधि चुनाव में जीत हासिल हुई थी। दूसरी ओर विजय कुमार सिन्हा ने पहली बार फरवरी 2005 के चुनाव में निर्वाचित हुए थे, उसके बाद मध्यावधि चुनाव में उन्हें राजद के ही फुलेना सिंह ने हराया था। 2010 में विजय सिन्हा ने फिर से वापसी की और तब से अब तक इस सीट से विधायक बनते आ रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां कुल 3,68,106 वोटर्स थे, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 3,95,117 हो गए। इस चुनाव में एसआईआर के बाद कमी आ गयी है। इनमें से लगभग 15.82% मतदाता अनुसूचित जाति से हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय का प्रतिशत लगभग 4.2% है। यह सीट यादव बाहुल्य, लेकिन भूमिहार वोटर्स का रोल निर्णायक होता है। वहीं पासवान और कुर्मी का भी अहम रोल है।

क्या होगा 2025 में : बहरहाल, 2010 से 2020 तक के विधानसभा चुनाव का रुख देखते हुए महागठबंधन के घटक दल भाजपा के विजय सिन्हा को घेरने में जुट गये हैं। इसके लिए नयी रणनीति के तहत राजद और कांग्रेस अपना-अपना क्षेत्र बदल भी सकते हैं। सियासी सूत्रों की मानें तो राजद लखीसराय से लड़ने का मन बना रहा है और उसकी जगह कांग्रेस को अपनी परंपरागत सीट सूर्यगढ़ा देना चाह रहा है। राजद विधायक प्रहलाद यादव के पाला बदलने से पार्टी का भी सूर्यगढ़ा सीट से मोह भंग हो रहा है। ऐसे में राजद की कांग्रेस से सीट बदलने की रणनीति काफी कारगर हो सकती है। इसके लिए लखीसराय से 2005 में विजय सिन्हा को हराने वाले फुलेना सिंह फिर से मैदान में कमर कसे हुए हैं। वे लगातार गांव-गांव में जनसंपर्क चला रहे हैं। वे साफ कहते हैं कि यदि ऐसा हुआ तो मैं पीछे नहीं हटूंगा और पूरी मुस्तैदी के साथ चुनाव लड़कर राजद की वापसी करूंगा। सियासी पंडित भी मानते हैं कि भले ही विजय सिन्हा उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंच गये हैं, लेकिन क्षेत्र में उनका कद घटता जा रहा है। 2010 में जहां वे 59,620 वोटों से जीते थे, वहीं 2015 में यह अंतर घटकर 6,556 और 2020 में 10,483 वोट रह गया। इससे यह साफ जाहिर है कि विपक्ष यदि सही रणनीति और उम्मीदवार के साथ उतरे तो विजय सिन्हा को कड़ी चुनौती दे सकता है। यदि महागठबंधन सीट बदलने पर सहमत हो जाता है तो 2025 के विधानसभा चुनाव में लखीसराय की सियासत बेशक रोमांचक होगी। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि इस रणनीति को राजद और कांग्रेस कितना सफल कर पाते हैं।