Ground Report : ‘दस्तक’ का घर-घर पहुंच रहा ‘संदेश’, बता रहे हैं- वाटर मैंनेजमेंट कितना जरूरी

Rajesh Thakur from Sandesh (Bhojpur) : भोजपुर जिले के संदेश प्रखंड स्थित एक छोटा-सा गाँव। सुबह के ठीक साढ़े सात बजे हैं। गाँव अभी पूरी तरह से जगा भी नहीं है। खपरैल की छतों पर ओस की कुछ बूंदें चमक रही हैं। गाँव के बगल में खेतों में लगे गोभी के पौधों पर ओस की बूंदें चांदी की तरह चमक रही हैं। पगडंडियों पर गाँव वालों की आवाजाही शुरू हो गयी है। कहीं दूर किसी के खाँसने की आवाज आ रही है। लोगों के पदचाप के बीच एकाध बाइक चलने की आवाज सन्नाटा तोड़ने के लिए काफी है। बाइक यह बताने के लिए काफी है कि विकास की राह पर गाँव चल पड़ा है। तभी उधर से एक टोली आती दिखती है… सिर पर दुपट्टा कसकर बाँधे महिलाएँ, कंधे पर बैग टाँगे पुरुष, और बीच-बीच में कदमों में बिजली लिये युवा। हर कोई एक नयी तरह के ऊर्जा से लवरेज… किसी के हाथ में कागज है, किसी के हाथ में सिर्फ भरोसा।

पगडंडियों पर होती है हलचल : पहला दरवाज़ा आता है- ठक-ठक… ठक-ठक… अंदर से कोई आवाज नहीं… फिर ठक-ठक… ठक-ठक… दरवाजे पर दस्तक इतनी विनम्र और शालीनता से कि किसी को चौंकाए नहीं, और इतनी दृढ़ कि कोई अनसुनी न कर सके। दरवाजा खुलता है.. दादी माँ ने पूछा- ‘क्या है बिटवा?’ ‘हम बदलाव की बात करने आए हैं अम्मा…, दो मिनट सुन लीजिए…’ बाहर खड़ी टोली में से एक युवक ने मीठे शब्दों में दादी माँ की जिज्ञासा शांत की। दादी माँ और टोली के लोगों की बात सुन घर के बाकी लोग भी बरामदे पर आ जाते हैं। अगल-बगल के पड़ोसी भी पहुंच जाते हैं। कुछ बच्चे भी पहुँच जाते हैं और टोली के लोगों की बात सुनते हैं। यह सुखद नजारा किसी एक दिन का नहीं है। यह टोली रोज आती है। कभी इसके घर तो कभी उसके घर। रोज-रोज ज्ञान की बात… ज्यादा बातें पानी बचाने को लेकर और कभी ‘हर घर, नल-जल योजना’ पर होती है। जितने भी सवाल आते हैं, सबका जवाब टोली के पास रहता है। यूँ कहें कि सवाल पूछने वालों को टोली के लोग अपने जवाब से संतुष्ट कर देते हैं; साथ ही घरों में पानी को कैसे बचाया जाए, कैसे नलों का रखरखाव हो, ये भी बताने से नहीं चूकते हैं। जल स्रोतों से लेकर उसके प्रबंधन तक पर बातें होती हैं।

क्या है दस्तक अभियान : दरअसल, ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता को लेकर भोजपुर जिले में एक अभिनव पहल के रूप में ‘दस्तक दल अभियान’ की शुरुआत की गयी है। इसका उद्देश्य हर घर तक पाइप जलापूर्ति की उपलब्धता सुनिश्चित करना, उपभोक्ता शुल्क संग्रहण को सुदृढ़ बनाना और जल स्रोतों के संचालन व रखरखाव को बेहतर बनाना है। इस अभियान की शुरुआत संदेश प्रखंड से की गयी है। यह पहल भोजपुर के जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के अधीन कार्यरत तकनीकी सहयोग इकाई- वाटर फॉर पीपल इंडिया की ओर से संचालित की जा रही है। बता दें कि दस्तक दल अभियान को एक समुदाय-संचालित अभियान के रूप में तैयार किया गया है, जिसमें जनप्रतिनिधियों, पंचायत सचिवों, वार्ड क्रियान्वयन समितियों, स्वच्छता कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है। दस्तक दल अभियान के तहत टोली बनाकर इसके सदस्य गाँव के हर घर तक पहुँचते हैं। वे जल एवं स्वच्छता से जुड़े व्यवहारों पर संवाद करते हैं। उन्हें अपनी जिम्मेदारी से परिचय करवाते हैं। बेशक इस पहल का उद्देश्य लोगों को केवल जानकारी देना नहीं है बल्कि व्यवहार परिवर्तन को प्रेरित करना है, ताकि जल प्रबंधन और स्वच्छता को लेकर समाज में रहने वाले लोगों में जागरूकता आए और वे अपनी जिम्मेदारी को समझें। खास बात कि गाँवों की पगडंडियों पर जब टोली चलती है तो वह किसी तरह के राजनीतिक जलूस की तरह शोर नहीं करती है, बल्कि जीवन में गूँजने वाली एक धीमी, स्थिर, लेकिन अडिग आवाज देती है। ऊर्जा से लवरेज टोली के सदस्यों के मन में जनहित कुछ कर गुजरने का जज्बा रहता है।

पत्रकारों की टोली ने लिया जायजा : संदेश के गाँव में जब हम पत्रकारों की टोली पहुंची तो नजारा देखकर मन प्रफुल्लित हो गया। टोली के सदस्यों में न कोई छोटा, न कोई बड़ा, सबके सब बराबर। उम्र की सीमा से मुक्त। कोई 20 साल का युवक तो कोई 55 साल के अधेड़; इन लोगों के साथ दीदी-दादी भी…। सबके मन में एक ऊर्जावान जज्बा। टोली में मौजूद स्वयं सहायता समूह की सदस्य मीनू कुमारी कहती हैं, ‘कभी-कभी सबसे बड़ा अभियान सरकार नहीं, समाज खुद शुरू करता है।’ माथे पर दस्तक की टोपी पहने मीनू काम को अपना मिशन मानती हैं। उनके शरीर में घर-घर घूमने और पगडंडियों पर चलने से थकान जरूर होंगी, लेकिन उनके चेहरे पर की चमक ने उस थकान को कहीं पीछे छोड़ दिया था। मानो हर दस्तक के साथ एक सपना और जाग रहा हो।

सक्सेस मंत्रा के दिये जाते हैं टिप्स : पास में खड़ा ग्रामीण धर्मेंद्र कुमार ने पूछने पर बताया कि यह टोली किसी नेता या पार्टी के पोस्टर नहीं बाँटती है। टोली के लोग गाँवों और घरों के अंदर की नल-जल से जुड़ी समस्याओं को न केवल समाधान करते हैं, बल्कि उन्हें समस्यायों पर जीत के मंत्र भी बताते हैं, ताकि आगे उन्हें टोली की जरूरत नहीं पड़े। स्थिति यह है कि जिस काम के लिए लोग पहले सरकार के भरोसे रहते थे, शिकायत करते थे कि काम नहीं हो रहा है, अब वह काम वे सब खुद करने लगे हैं। अपनी तकलीफ का हल अब वे खुद ढूंढ़ने लगे हैं और इसमें उन्हें सफलता भी मिल रही है। वहीं पर मौजूद महिलाएं कहती हैं कि हम पहले किसी बैठक तक में नहीं जाते थे। अब हम ही सभा बुलाते हैं। हम ही मुद्दे तय करते हैं और हम ही फैसले लिखते हैं। गाँव के ही राम शर्मा जी अपना गमछा सँभालते हुए कहते हैं कि पहले लगता था कि ये टोली वाले क्या करेंगे? हम बुजुर्ग को कैसे संभालेंगे, अब यही लोग हमें बता रहे हैं कि अधिकार कैसे माँगे जाते हैं और हक कैसे लिये जाते हैं। छोटी-छोटी समस्यायों को कैसे दूर किया जाता है, ये भी हमलोग इनसे सीख रहे हैं।

क्या कहते हैं आंकड़े : खास बात कि दस्तक की ओर से अब तक 10 से अधिक पंचायतों को कवर्ड कर लिया गया है। टोली के लोग इन पंचायतों के लगभग 95 वार्डों के एक-एक घर में पहुंच गए हैं। 90 से अधिक कैंपेन प्रोग्राम चलाये गए हैं। इन कार्यक्रमों में एक्सपर्ट्स को भी बुलाये जाते हैं। लोगों के बीच क्विज भी कराए जाते हैं। अब तक 110 क्विज कराए गए हैं। मोबाइल वाणी पर आने वाली शिकायतों को भी दूर किया जाता है। अब तक 321 मामले मोबाइल वाणी तो 28 मामले लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की ओर से निबटाये गए हैं। इसी तरह, टोली के लोग 3000 से अधिक घरों में पहुंचे हैं, जबकि 51 जगहों से वाटर सैंपल जमा किये हैं। दस्तक के कैंपेन में लगभग 70 एक्सपर्ट शामिल हुए हैं।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स : दस्तक अभियान से जुड़े मो फैयाज बताते हैं कि इस पूरी मुहिम को लोकतंत्र की असल प्रयोगशाला बताते हैं। वे कहते हैं कि गाँव-स्तर पर जन-नेतृत्व की यह अनोखी प्रयोगशाला है। यहां बिना किसी झंडे-डंडे के काम हो रहा है। सिर्फ नीयत और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर आंदोलन खड़ा हो रहा है। यही लोकतंत्र की असली आत्मा है। वहीं, वाटर फॉर पीपुल के सी 4 डी एक्सपर्ट सफदर अली कहते हैं कि इतना ही नहीं, कम्युनिटी रेडियो की तर्ज पर ‘मोबाइल वाणी’ शुरू किया गया है। इसके जरिये भी लोगों से जल संरक्षण और उसके उचित प्रबंधन पर लोगों को टिप्स दिये जाते हैं। आज गांवों की पगडंडियों पर पड़ती हर दस्तक एक आवाज बन गयी है। यह आवाज आशा की है। यह आवाज बदलाव की है। यह आवाज जाग चुके गाँव की है। हर सुबह जब ये लोग पगडंडियों पर टोली के रूप में निकलते हैं तो हवा भी जैसे इनके साथ चलने लगती है। रास्ते इन्हें पहचानने लगे हैं और गाँव की मिट्टी कहती सुनाई देती है कि जहाँ दस्तक है, वहीं से उम्मीद शुरू होती है। दूसरी ओर, संदेश के प्रखंड विकास पदाधिकारी चंदन कुमार कहते हैं कि दस्तक की यह शानदार पहल है। हमने भी कई गांवों को देखा है। लोगों से बातें की। इस अभियान से जुड़े लोग जनहित में अच्छा कार्य कर रहे हैं। जल ही जीवन है, इस पर तो बहुत बातें होती हैं। लेकिन जल स्रोतों के संरक्षण और जल प्रबंधन पर कम बातें होती हैं। ऐसे में दस्तक के लोग गाँव-गली जाकर ग्रामीणों को जागरूक कर रहे हैं, यह बड़ी बात है।