प्रख्यात लेखक अरुण सिंह रमणी के नखशिख वर्णन की तरह कागज पर उकेरते हैं पटना को, तीनों पुस्तकें ऐतिहासिक दस्तावेज

PATNA (RAJESH THAKUR) : देश के प्रख्यात लेखक, स्वतंत्र पत्रकार और फोटोग्राफर अरुण सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनकी कूची, उनकी रपट, उनकी लेखकीय शैली ही उनके व्यक्तित्व के बारे में बयां करने के लिए काफी है। लेखक अरुण सिंह को पटना से अनन्य प्रेम है। वे इस शहर को विभिन्न कोणों से किसी रमणी के नखशिख वर्णन की तरह कागज पर उकेरते हैं। एक मूर्तिकार की तरह शिद्दत से गढ़ते हैं। पटना शहर पर केंद्रित उनकी तीन पुस्तकें आ चुकी हैं। उनकी तीसरी पुस्तक ‘पटना : भूले हुए किस्से’ का विमोचन दिसंबर’ 24 में पटना के गांधी मैदान में आयोजित पुस्तक मेला में हुआ था। संयोगवश, 29 जनवरी को उनके साथ दिनभर बिहार म्यूजियम में घूमने का मौका मिला। इस दरम्यान देश के ख्यातिलब्ध कला समीक्षक सुमन सिंह, बिहार म्यूजियम के अपर निदेशक अशोक सिन्हा, साहित्यकार जयप्रकाश और मुखियाजी डॉट कॉम के संपादक राजेश ठाकुर मौजूद रहे। बातचीत में सबों ने कहा- अरुण सिंह की पटना पर आधारित तीनों पुस्तकें एक नायाब कृति है।

ललित कला अकादमी में मुलाकात : दरअसल, पटना के ललित कला अकादमी में चित्र प्रदर्शनी लगी हुई है। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन 28 जनवरी को उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने की। शाम में कला समीक्षक सुमन सिंह का व्याख्यान हुआ। उस आयोजन में मुझे भी जाने का मौका मिला। वहां पहली बार सुमन सिंह से मुलाकात हुई। उन्हें पता चला कि मेरा घर विश्वप्रसिद्ध चित्रकार आचार्य नंदलाल बसु के जन्मस्थल हवेली खड़गपुर में है। तब उन्होंने बताया कि उनका भी हवेली खड़गपुर जाना-आना लगा रहता है। वहां के राजनीतिक स्तंभ रहे रामवरण बाबू (रामवरण सिंह) उनके रिश्तेदार हैं। यह जानकर उन्हें काफी खुशी मिली कि रामवरण बाबू से मेरा भी नजदीकी संबंध है। प्रदर्शनी में लेखक अरुण सिंह भी पहुंचे थे। उन्हीं के साथ हमलोग पटना सर्किट हाउस पहुंचे। काफी देर तक बातें हुईं।

बिहार म्यूजियम में हुई बात : 29 जनवरी की सुबह सुमन जी बिहार म्यूजियम पहुंचे। मेरी चर्चा हुई तो अपर निदेशक अशोक सिन्हा ने कहा कि वे (राजेश ठाकुर) कई बार बोले हैं, लेकिन एक बार भी नहीं आए हैं। सुमन जी ने फोन किया तो मैं भी दोपहर बाद पहुंच गया। यह देखकर मन प्रफुल्लित हुआ कि वहां पहले से ही लेखक अरुण सिंह और जयप्रकाश पहुंचे हुए हैं। इस दौरान हमलोगों ने बिहार म्यूजियम में सुबोध गुप्ता के बनाए चित्रों और कृतियों की प्रदर्शनी को देखा। उनकी बारीकियों को समझा। गाइड की भूमिका में सुमन जी ही रहे। काफी देर तक अपर निदेशक अशोक सिन्हा के चैम्बर में बातें हुईं। वे अपने सरकारी कार्यों को बीच-बीच में निबटाते भी जा रहे थे और हमलोगों को कुछ-कुछ जानकारियां भी दे रहे थे। तमाम तरह के साहित्यिक मंथन के बीच लेखक अरुण सिंह की पटना पर आधारित तीनों पुस्तकें छायी रहीं। सबों ने एक स्वर में कहा कि अरुण जी की तीनों पुस्तकें अद्भुत हैं। नायाब कृति हैं। ऐतिहासिक दस्तावेज हैं। पटना पर आधारित इन पुस्तकों को सहेज कर रखने की जरूरत है।

पहली किताब : पटना खोया हुआ शहर। प्रसिद्ध साहित्यकार कृष्ण समिद्ध लिखते हैं कि यह किताब एक खिड़की की तरह है, जो आपको टाइम ट्रैवल करवाती है। 600 ईसा पूर्व से आज तक, लगभग 2600 सालों के पटना का सफर केवल 240 पन्नों में समेटा गया है। यह पेड़ों से बने पन्नों का अब तक का सर्वोत्तम सदुपयोग है। पहली दृष्टि में यह आपको एक साधारण किताब लगेगी, जो किताब बनने के लिए लिखी भी नहीं गयी थी। इसे साढ़े चार वर्षों की लंबी अवधि में प्रभात खबर के ‘हिस्ट्री एंड हेरिटेज’ साप्ताहिक कॉलम के रूप में लिखा गया था। बकौल लेखक, ‘इस बार यह सिलसिला शुरू हुआ तो करीब साढ़े चार वर्षों तक चला। शोध के क्रम में जैसे-जैसे मैं इतिहास के पन्ने पलटता, एक नया पटना सामने दिखता। पटना के लिए मेरा प्यार बढ़ता चला गया। मुझे लगा कि अब तक मैं पटना को कितना कम जानता था!’ वी. एस. नायपॉल भी कहते हैं, ‘With knowledge, appreciation grows’ लिखने और किताब बनने की इस प्रक्रिया में ही इस किताब की खूबसूरती छिपी है। मिर्ज़ा ग़ालिब ने सही ही कहा है, “आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,”। उसी तरह एक किताब के विचार को एक किताब बनने में भी ‘इक उम्र’ चाहिए होती है असर होने के लिए। इस किताब को भी लेखक ने ‘इक उम्र’ दी है।

दूसरी किताब : पटना वास्तुकला, इतिहास और कथाएं। IPS व साहित्यकार सुशील कुमार लिखते हैं कि इस किताब के लेखक अरुण जी पटना के उन चंद बिरले लेखकों में से हैं, जो अपने काम में डूबकर उसका सर्वश्रेष्ठ सामने लाते हैं। पटना एक खोया हुआ शहर के बाद पटना की इमारतों का शिल्प और इतिहास की अथाह जानकारियां इस किताब में समेटी गयी हैं।
भवन निर्माण विभाग, बिहार सरकार का धन्यवाद जिसके द्वारा इस किताब को छपवाया गया। वहीं BBC की पत्रकार सीटू तिवारी लिखती हैं, पटना शहर को लेकर एक जरूरी किताब, पटना का महत्वपूर्ण दस्तावेज है प्रिय पत्रकार, शोधकर्ता, फोटोग्राफर और सबसे बड़ी बात अपने शहर पटना से प्रेम करने वाले अरुण सिंह की किताब। खूब बधाई और पटना में बीते 18 साल से रह रही इस शहरी (मैं) का उनको आभार। इस तरह की किताबें शहर के आर्किटेक्चर / इतिहास से आपका रागात्मक संबंध बनाती है।

तीसरी किताब : पटना – भूले हुए किस्से। प्रख्यात कवि अरुण कमल लिखते हैं कि यह पुस्तक एक अनूठी कृति है। यह एक साथ इतिहास भी है, कथा भी और सामाजिक वृतांत भी। लेखक ने पटना नगर को एक जीवित व्यक्ति की तरह देखा है, अनेक दिलों की धड़कन और कोशाओं के आतंरिक तरंगों को बारीकी से दर्ज करते हुए, प्यार और कुछ कौतूहल से निहारते हुए। एक अर्थ में यह पुस्तक पटना नगर का कार्डियोग्राम है। यहां शहर का भूगोल या रैखिक इतिहास नहीं, बल्कि शहर के बसने, उजड़ने, बाशिंदों की जिंदगी और आपसी रिश्तों की कथा-वार्ता है। किसी भी शहर को इस तरह भी देखा और समझा जा सकता है- उन लगभग विस्मृत पात्रों के माध्यम से जिनकी वजह से कोई जगह गुलजार हुई और जिनके गुजर जाने से वीरान हुई, लेकिन जिन्होंने शहर को एक नया रूप, नया रंग और दीर्घ आयु दी और शहर के आज की सतह के नीचे वे सारे पात्र, उनका जीवन और फसाने रत्नों की तरह दमक रहे हैं। वहीं भावना शेखर लिखती हैं कि 2000 साल पहले से लेकर 100 बरस पहले का पटना कैसा था? इस सुदीर्घ कालखंड में सम्राट अशोक के 9 अज्ञात पुरुष, नगरवधू कोशा, लंदन तक गूंजने वाला पटना का वो अनोखा मुकदमा, मुगलों और अंग्रेजों को कर्ज देने वाला जगत सेठ, तन्नो बाई, धरीक्षण तिवारी, पटना की महफिलें, हिंदू दोस्त के लिए जान कुर्बान करने वाला मुसलमान, विलियम टेलर आदि-आदि जैसी विस्मृत हो गयीं शख्सियतों और उनके किस्सों की पोटली है यह किताब।