Bihar MLA Election 2025 : लालू यादव को फुलटॉस दे रहे आनंद मोहन, ‘भूरा बाल’ का दिखेगा असर ?

Mukhiyajee। Patna : बिहार विधानसभा चुनाव की विधिवत डुगडुगी बजने में देर हो, लेकिन इलाकों में सियासी हलचल तेज हो गयी है। नेताओं का क्षेत्रीय भ्रमण भी शुरू हो चुका है। हां, जिनके टिकट कन्फर्म हैं, वह इत्मीनान से प्रचार कर रहे हैं और जो प्रबल दावेदार हैं, कन्फर्म की उम्मीद लिये कुछ अधिक ही जोश दिखा रहे हैं। और, जिनका मामला ही अधर में है, उनका हाल मत पूछिए, उनके अंतर्मन की व्यथा को महसूस कर सकते हैं। इसी बीच बड़े नेताओं के बयान भी आने लगे हैं। इसी में कुछ विवादित बयान भी आ रहे हैं। इसी में प्रधानमंत्री की दिवंगत माँ को लेकर अपमानजनक बयान आया था, जिस पर सियासी महाभारत अभी भी जारी है। इसी बीच पूर्व सांसद आनंद मोहन का बयान आया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आनंद मोहन ने मुजफ्फरपुर के एक कार्यक्रम में कहा है कि ‘भूरा बाल’ तय करेगा कि सिंहासन पर कौन बैठेगा…। इसी ज्वलंत मुद्दे पर वरीय पत्रकार विवेकानंद कुशवाहा ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बेवाक विचार को रखा है। उसे यहां अक्षरशः लिया गया है। इसमें उनके निजी विचार हैं। हालांकि, कहा जा रहा है कि आनंद मोहन ने अपने बयान को लेकर खेद भी प्रकट किया है।

1995 में इसी लाइन पर हुआ था पॉलिटिक्स : आनंद मोहन सिंह का यह बयान (‘भूरा बाल’ तय करेगा कि सिंहासन पर कौन बैठेगा…।) लालू प्रसाद यादव के लिए फुलटॉस की तरह है, जिस पर 20-20 युग में सिक्सर पड़ने की संभावना ज्यादा होती है। आनंद मोहन ने 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी लालू प्रसाद के सामने इसी लाइन पर पॉलिटिक्स करने की कोशिश की थी। इसके लिए उन्होंने 1993 में ‘बिहार पीपुल्स पार्टी’ बनायी थी। जैसे अभी प्रशांत की सभाओं में भीड़ दिखती है, वैसे ही आनंद मोहन की सभाओं में तब भीड़ उमड़ती थी। खासकर, राजपूत और भूमिहार समाज के युवाओं में इनके दल के लिए अलग दीवानगी थी, लेकिन जब चुनाव के परिणाम आये, तो इनके होश फाख्ता हो गये।

बिपीपा को मिला था 3% वोट : बिहार में वह एकमात्र मौका था, जब ‘जनता दल’ को अकेले बहुमत मिली। 250 के आसपास सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद इनकी बिहार पीपुल्स पार्टी को मात्र 3 परसेंट वोट मिले और एकमात्र उम्मीदवार ‘विजय मंडल’ को अररिया से जीत मिली। वह भी कुछ दिन बाद जनता दल में शामिल हो गये। दरअसल, 1994 में हुए लोकसभा उपचुनाव में लवली आनंद को वैशाली से मिली जीत से इनको लगा कि सारे सवर्णों को एकजुट करके 1995 में लालू प्रसाद को उखाड़ फेकेंगे। नतीजा उल्टा हुआ। इनके लड़ने का ऐसा साइड इफेक्ट यह हुआ कि बड़ी संख्या में कांग्रेस और भाजपा के अगड़ी जातियों के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में यदि अभी आनंद मोहन साहब भूरा बाल और सिंहासन बत्तीसी का पाठ करेंगे तो अपने और अपने एनडीए गठबंधन के लिए गड्ढा ही खोदेंगे। अब तो बिहार में जाति गणना के आंकड़े उपलब्ध हैं, तो लालू प्रसाद जैसे इस पिच के मास्टर के सामने यह सब बयान उल्टा पड़ जायेगा।

चिराग ने भी 2020 में चली थी चाल : नीतीश कुमार भी अपने काम और बिहार के उस तबके की वजह से बिहार के सिंहासन पर विराजमान हैं, जिनके पास न बड़ी जाति है, न उनकी गांव में बड़ी संख्या वाली आबादी है, ये चुपचाप सब सुनते-देखते हैं और सुकून का रास्ता चुनते हैं। आनंद मोहन को तो यह कहना चाहिए था कि नीतीश कुमार की वजह से ‘भूरा बाल’ तबके को बिहार में संख्या के अनुपात में मंत्रीमंडल में ज्यादा हिस्सेदारी मिली हुई है। चाहे वह बिहार सरकार में हो या बिहार कोटे से केंद्र सरकार में, जबकि इसी तबके ने चिराग पासवान के कंधे पर चढ़कर 2020 में भी नीतीश कुमार को सिंहासन से दूर करने की नीति अपनायी थी, लेकिन नीतीश कुमार के काम ने उनको बचा लिया। उस चुनाव में तो आपके परिवार (लवली आनंद और चेतन आनंद) ने लालू जी के साथ जाकर राजद को सिंहासन पर लाने की भी पूरी कोशिश की थी, इसलिए बिहार में आगे भी सिंहासन पर कौन बैठेगा, यह चुपचाप वोट करने वाला वंचित तबका ही तय करेगा।