पूर्णिया में पीएम की सभा के चुनावी मायने; मोदी, नीतीश व सम्राट की तिकड़ी से सीमांचल में सेंधमारी… Read Special Report

Rajesh Thakur l Patna : देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीमांचल के मुहाने पर पूर्णिया में हुई सभा ने एक बार फिर विपक्षी खेमे की धड़कन बढ़ा दी है। कहने को तो यह सरकारी सभा थी, लेकिन इसे अघोषित रूप से ‘चुनावी सभा’ भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। चुनावी मौसम में इस सभा के कई प्रमुख मायने हैं। भले ही निर्वाचन आयोग की ओर से बिहार विधानसभा चुनाव के लिए डुगडुगी नहीं बजी है, लेकिन राजनीतिक दलों के नेताओं का दौरा शुरू हो गया है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री के पूर्णिया दौरा को देखा जा रहा है। इस दौरे का बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को कितना लाभ मिलेगा, कितनी सीटों पर वह अपना परचम लहरा पाएगा और सीमांचल के अल्पसंख्यक वोटों में कितनी सेंधमारी कर पायेगा, यह तो आनेवाला समय बताएगा, लेकिन इस सभा से खासकर भाजपा के लोग काफी गदगद हैं।

चुनावी साल में पीएम का यह 7वां बिहार दौरा… दरअसल, विकास योजनाओं के लिए करोड़ों करोड़ की सौगात, पूर्णिया एयरपोर्ट का उद्घाटन, नयी ट्रेनों के परिचालन के जरिए प्रधानमंत्री मोदी ने जहां लोगों के बीच डेवलपमेंट का मैसेज दिया, वहीं उन्होंने राजद और कांग्रेस पर एक साथ सियासी हमला कर यह भी संदेश दिया कि विकास का कार्य केवल एनडीए सरकार ही कर सकती है। सियासी गलियारे में सबसे अहम यह रहा कि घुसपैठिये पर कार्रवाई करने की बात कर पीएम मोदी ने सीमांचल में वोटों के ध्रुवीकरण का भी ‘पत्ता’ चला। दूसरी ओर, इस सभा में भी नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार और सम्राट चौधरी की तिकड़ी छायी रही, जिसकी सोशल इंजीनियरिंग आज बिहार के सियासी गलियारे में सुपरहिट साबित हो रही है। बता दें कि पूरे 11 वर्षों में प्रधानमंत्री का यह 55वां और इस साल का 7वां बिहार दौरा था।

सीमांचल में विस की लगभग 24 सीटें हैं… प्रधानमंत्री मोदी का पूर्णिया दौरा इसलिए भी मायने रखता है कि यह बांग्लादेश से सटे सीमांचल इलाके में है। सीमांचल मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है और यह भाजपा के लिए आसान जमीन नहीं रही है। मुस्लिम बेल्ट होने की वजह से यहां एनडीए को हमेशा संघर्ष करना पड़ा है। दरअसल, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया मिलाकर सीमांचल में कुल 24 विधानसभा सीटें हैं। 2015 और 2020 दोनों चुनावों में इन सीटों पर भाजपा-जदयू गठबंधन का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा था। हालांकि, 2020 के चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने यहां से 5 सीटें झटक कर अघोषित रूप से एनडीए को काफी फायदा पहुंचाया था, लेकिन इस बार उम्मीद काफी कम है। ऐसे में मोदी की रैली के जरिये भाजपा ने साफ संकेत दिया है कि वह मुस्लिम बहुल इलाकों में भी अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।

वोट ध्रुवीकरण की संभावना… प्रधानमंत्री ने साफ लब्जों में कहा-,’घुसपैठिये को हर हाल में देश से बाहर जाना ही होगा। इन घुसपैठिये को कांग्रेस और राजद के लोग बचाव कर रहे हैं। इसे बचाने के लिए राहुल गांधी यात्रा निकाल रहे हैं, लेकिन उसे कोई फायदा होने वाला नहीं है। एक-एक घुसपैठिये को देश से बाहर निकाला जाएगा’। पीएम मोदी की सभा ने इलाके में राजनीतिक बहस को गर्म कर दिया है। भाजपा का सीधा दांव यही है कि मुस्लिम वोट अगर एकमुश्त विपक्षी खेमे (महागठबंधन) को जाएं तो हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण एनडीए के पक्ष में हो। सियासी पंडितों की मानें तो सीमांचल में यादव, कुर्मी, सवर्ण समेत पिछड़े वर्गों की अहम हिस्सेदारी है। भाजपा चाहती है कि हिंदू के नाम पर इन्हें एकजुट कर मुस्लिम वोटों के दबदबे को संतुलित किया जाए। इस थ्योरी पर पूर्णिया लोकसभा से कई बार भाजपा और जदयू की जीत हुई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो सिर्फ किशनगंज एनडीए के हाथ से बाहर हुआ था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ अररिया ही बच पाया।

एनडीए के लिए यह ‘तिकड़ी’ रणनीति… पीएम मोदी, सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी की तिकड़ी एक बार फिर छायी रही। एक बार फिर मंच पर जाने के दौरान गाड़ी पर यह नजारा आम था। पहली पंक्ति में बीच में जहां मोदी स्वयं थे तो दांयी ओर नीतीश कुमार और बांयी ओर सम्राट चौधरी थे। कहने को तो पीछे में विजय सिन्हा भी मौजूद थे, लेकिन उनकी राजनीतिक स्थिति समझी जा सकती है। विकास, राष्ट्रीय सुरक्षा और केंद्र की योजनाओं को आगे रखकर भाजपा मोदी के जरिये यह संदेश दे रही है कि सीमांचल पिछड़ापन छोड़कर मुख्यधारा से जुड़े। बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का चेहरा सुशासन और भरोसेमंद का प्रतीक माना जाता है। वे सुशासन बाबू के नाम से लोकप्रिय भी हैं। वहीं सम्राट चौधरी की पिछड़े वर्ग और भाजपा के कोर वोटरों को समेटने में अहम भूमिका है। गमछा और तेवर से वह कार्यकर्ताओं में जोश भरते हैं। राजद पर सबसे कड़ा और बड़ा सियासी हमला करने वालों में भाजपा में सबसे आगे कोई है तो वो हैं सम्राट चौधरी।

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यह दिखाना चाहती है भाजपा : बहरहाल, मोदी का करिश्मा, नीतीश की प्रशासनिक छवि और सम्राट चौधरी का आक्रामक तेवर, तीनों को मिलाकर भाजपा यह दिखाना चाहती है कि एनडीए सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाली ताकत है। इसका सीधा संदेश सीमांचल के हिंदू वोटरों को देना है कि ‘अगर मुस्लिम वोट एकजुट है, तो हिंदू वोट क्यों नहीं’। लेकिन यह भी कड़वा सच है कि भाजपा के लिए सीमांचल अभी भी आसान इलाका नहीं है। लेकिन वोटों का ध्रुवीकरण यदि भाजपा की योजना के मुताबिक हुआ, तो 24 सीटों में से 8-10 सीटों का फायदा एनडीए को हो सकता है। दूसरी ओर, सियासी पंडितों के अनुसार, भाजपा की रणनीति तभी सफल हो सकती है, जब एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों का सही ढंग से बंटवारा हो। साथ ही टिकट भी सही ढंग से बंटे। वोटों के लीकेज को रोका जाए। यह सब संतुलित रहा तो एनडीए के लिए सीमांचल क्रैक करना आसान हो जाएगा।

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