बिहार में माफिया की प्रयोगशाला बना कोचिंग, कृपया स्टूडेंट्स-पैरेंट्स पोस्टरों पर न जाएं : अमरनाथ

Mukhiyajee Desk / Patna : बिहार में एक बार फिर कोचिंग का महाजाल फैल गया है। यह महाजाल स्टूडेंट्स-पैरेंट्स के लिए ‘महाजाल’ बन गया है। यहां संचालकों के लिए कोचिंग पूरी तरह बिजनेस स्ट्रेटेजी बन गया है। बच्चों की सफलता और असफलता से किसी को कोई मतलब नहीं है। वह अपने हित में फैसला लेते हैं। बस, उनका नाम चलता रहे, उनका टीआरपी बढ़ता रहे… इस पर एजुकेशनल एक्सपर्ट अमरनाथ ने बड़ी बेबाकी से लिखा है कि किस तरह कोचिंग पर ‘माफियागिरी राज’ है। यहां उनका आलेख अक्षरशः प्रकाशित किया जा रहा है। इसमें उनके निजी विचार हैं।

केवल सपना मत बेचिये : कक्षा 11 में प्रवेश करते समय लगभग हर छात्र को यह सपना बेचा जाता है कि वह IIT जाएगा। यह सपना उसका नहीं होता है। वह सपना उसे दिखाया जाता है। पोस्टर, टॉपर टॉक्स, एयर रैंकर्स की मुस्कान और ‘अगर उसने किया तो तुम भी कर सकते हो’ जैसे खोखले नारे, यहीं से एक संगठित भ्रम की शुरुआत होती है। लेकिन सच्चाई यह है कि कक्षा 11 के अंत तक यह भ्रम टूटने लगता है। छात्र खुद समझने लगता है कि उसकी औकात ‘हाँ’ सिस्टम की भाषा में उसकी ‘परफॉर्मेंस’ JEE Advanced से बहुत नीचे है। तब लक्ष्य बदला जाता है- पहले JEE Main, फिर ‘किसी तरह बोर्ड निकाल लो’… यह कोई व्यक्तिगत असफलता नहीं है, यह कोचिंग की डिजाइन की गयी विफलता है। सबसे बड़ा अपराध यह नहीं कि बच्चे असफल होते हैं। सबसे बड़ा अपराध यह है कि इस असफलता को जान-बूझकर छिपाया जाता है।

डेटा से गायब हो जाते हैं हजारों स्टूडेंट्स : कोचिंग संस्थान कभी यह नहीं बताते हैं कि JEE/NEET की तैयारी में लगे कितने छात्र बोर्ड परीक्षा में ही फेल हो जाते हैं। फिर मानसिक टूटन के कारण टेस्ट देना छोड़ देते हैं। इसके बाद कक्षा 12 में पहुँचते-पहुँचते पढ़ाई से ही नफरत करने लगते हैं। अगर यह आंकड़ा ईमानदारी से छापा जाए, तो कई शहरों में आधी से ज्यादा इमारतों पर कोचिंग के लगे पोस्टर उतर जाएँ। क्योंकि, कोचिंग के कई बैचों में 50 से 60% छात्र अंततः सर्वाइवल मोड में होते हैं; सेलेक्शन नहीं, सिर्फ पास होने की लड़ाई के लिए जद्दोजहद करते रहते हैं। दरअसल, यह चुप्पी कोई भूल नहीं, बिजनेस स्ट्रैटेजी है, क्योंकि सिस्टम को छात्र नहीं चाहिए, उसे तो कच्चा माल चाहिए। कुछ चुनिंदा चेहरे सफलता का ब्रांड बनते हैं, जबकि बाकी हजारों छात्र डेटा से गायब हो जाते हैं।

और सबसे घिनौनी बात… ऐसे छात्रों को भी JEE Advanced का कोर्स बेचा जाता है, जिनकी औसत टेस्ट परफॉर्मेंस 30% से नीचे है और जिन्होंने बेसिक सवालों तक पर पकड़ नहीं बनायी। उनकी कॉपी में सिलेबस से ज्यादा डर भरा होता है। यह शिक्षा नहीं, एकेडमिक ओवरडोज है। अगर इसे मेडिकल भाषा में कहें तो यह वैसा ही है, जैसे चार दिन की सर्दी में ICU का ट्रीटमेंट दे दिया जाए। न इलाज के लिए, बल्कि बिल बढ़ाने के लिए। शिक्षा में यह ओवरडोज ज्ञान नहीं देता, आत्मविश्वास मारता है। देखें तो कोचिंग माफिया सफल अपवादों को नियम बनाकर पेश करता है और असफल बहुसंख्या को कूड़े की तरह सिस्टम से बाहर फेंक देता है। न कोई काउंसलिंग, न कोई ईमानदार गाइडेंस, न यह स्वीकारोक्ति कि ‘यह कोर्स तुम्हारे लिए नहीं है।’ इस पूरे खेल में सबसे ज्यादा दोषी सिर्फ संस्थान नहीं हैं। हम अभिभावक भी अपराध में साझेदार हैं। हम यह सुनना ही नहीं चाहते कि हमारा बच्चा औसत है। हम ‘IIT या कुछ नहीं’ की जिद में बच्चों को ऐसी दौड़ में धकेल देते हैं, जहाँ वह शुरू से ही घायल होता है।

हम पोस्टर पर नहीं जाएं… सवाल यह नहीं है कि बच्चा कक्षा 12 में किस कोर्स में जाएगा। असल सवाल यह है कि क्या कक्षा 11 ने उसे इस युद्ध के लिए तैयार किया भी है या नहीं? दरअसल, हर बच्चा टॉपर नहीं होता। हर बच्चा JEE Advanced के लिए नहीं बना होता। लेकिन यह मान लेना किसी बच्चे की हार नहीं, उसे बचा लेना है। कक्षा 12 कोई ‘मैजिकल फैक्टरी’ नहीं है। यह वह साल है, जहाँ बोर्ड, एंट्रेंस, स्कूल और मानसिक दबाव; ये सब एक साथ टूटते हैं। ऐसे में झूठे सपनों का बोझ डालना, बच्चे को नहीं, उसका भविष्य कुचलना है। ऐसे में पैरेंट्स को भी जागरूक होने की जरूरत है। देखा जाए तो समाधान कोई क्रांतिकारी कदम नहीं है, बस ईमानदार होने की जरूरत है। पहले बोर्ड और बेसिक्स, फिर JEE Main… और सिर्फ वही बच्चे Advanced की ओर जाएँ, जिनकी तैयारी सच में वहाँ तक पहुँची हो। बाकी सबको Advanced का सपना बेचना शिक्षा नहीं, धोखाधड़ी है, सुनियोजित, लाभकारी और निर्दयी साजिश…। आज की सबसे बड़ी पैरेंटिंग जरूरत यही है कि हम पोस्टर पर नहीं, अपने बच्चे की वास्तविक स्थिति पर भरोसा करें।