PATNA (RAJESH THAKUR) : आपदा-विपदा पर किसी का जोर नहीं है। अहमदाबाद का विमान हादसे ने यह जरूर बता दिया कि ‘कल किसने देखा है’। ऐसी ही विपदा प्रिंट मीडिया के सशक्त हस्ताक्षर वरीय पत्रकार नवीन कुमार मिश्रा के साथ घटित हुई। हालांकि, मैं उनसे कभी नहीं मिल पाया था। किंतु वे हमारे फेसबुक से जुड़े हुए थे। वे सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव थे। कल 19 जून को वरीय पत्रकार नवीन कुमार मिश्रा को काल ने हमलोगों से छीन लिया। वे ‘होनी तो होकर रहे’ की चपेट में आ गए। कई अखबारों के संपादक रहे उनके बड़े भाई ज्ञानवर्धन मिश्रा ने लिखा है- ‘मर्मांतक पीड़ा। वज्रपात से कम नहीं। बिहार और झारखंड में दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ रहे अनुज नवीन कुमार मिश्र का आज रात रांची में निधन। बेटे के बाद अब छोटे भाई की अर्थी को कंधा लगाना हृदयविदारक। कैसी परीक्षा ले रहे हो भगवान।’ इससे उनकी अंतःपीड़ा को समझा जा सकता है। नवीन कुमार मिश्रा के निधन पर मुखियाजी परिवार भी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। उनके साथ काम कर चुके सुविज्ञ दुबे लिखते हैं- ‘इतनी भी जल्दी क्या थी नवीन भैया।’ अन्य पत्रकारों ने भी उनके निधन पर शोक प्रकट किया है।
वरीय पत्रकार अरविंद शर्मा लिखते हैं- ‘नवीन कुमार मिश्र अब इस दुनिया में नहीं हैं। आज ही दूसरी दुनिया के लिए प्रस्थान कर गए। जब तक जिए पत्रकारिता को दिल से जीते रहे। पटना दैनिक जागरण में स्टेट ब्यूरो हेड थे। मेरे सीनियर थे। उनके रांची तबादले के बाद ही मैं उनका उत्तराधिकारी बना था। सात वर्षों से रांची को आशियाना बना रखा था। आउटलुक के लिए लिख रहे थे। उनके निधन से मर्माहत हूं। रांची के वरिष्ठ पत्रकार संजय कृष्ण ने नवीन जी के नहीं रहने की सूचना दी।
नवीन जी उस परिवार से आते थे, जिसके लगभग सारे सदस्य पत्रकारिता को ओढ़ते-बिछाते हैं। नवीन जी के पिताजी रामजी मिश्र ‘मनोहर’ बिहार में हिंदी पत्रकारिता के पितामह माने जाते थे। भाई ज्ञानवर्धन मिश्र कई अखबारों के संपादक रह चुके हैं। कुछ दिन पहले सड़क दुर्घटना की चपेट में आकर नवीन जी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। ब्रेन सर्जरी के बाद धीरे-धीरे स्वास्थ्य सुधर रहा था। घर आ गए थे। दुबारा ऑपरेशन हुआ। फिर ठीक हो गए, पर अचानक प्रस्थान कर गए। नवीन जी की सरलता, सहजता और पत्रकारिता की निष्पक्ष दृष्टि को भुलाया नहीं जा सकता। उनका जाना पत्रकारिता के लिए बड़ी क्षति है। श्रद्धांजलि।’

वरीय पत्रकार अतुल उपाध्याय अपने फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं- ‘पत्रकारिता की बारीकियां सिखाने वाले नवीन मिश्रा चले गए। कहां से शुरू करूं पता नहीं। एक सीनियर, एक बड़ा भाई और एक शानदार जिंदादिल इंसान, वे तीनों ही थे। नवीन कुमार मिश्र जब सचिवालय के गलियारे में चलते तो अलग ही नजारा होता। वित्त, कार्मिक, गृह, कैबिनेट हर महकमे के बाबू हाकिम सलाम दुआ जरूर करते। वे धीरे से अभिवादन का जवाब देते और खबर की तलाश में आगे बढ़ जाते। ऐसी बारीक नजर और सरकारी गतिविधियों को पकड़ने की ऐसी कला कि पूछिए मत। किस बाबू के टेबल से कौन-सी महत्पूर्ण फाइल मूव कर रही है, जो उस दिन की सबसे बड़ी खबर होने वाली है, इसकी गजब परख होती उन्हें। ठीक उसी टेबल पर जाकर ठहरते, इशारों में बाबू से बात करते और निकल जाते। तब हम जैसे नए पत्रकार उनसे सीखा करते थे। सरकारी कागजातों की भाषा समझनी हो तो हमें नवीन भइया ही याद आते। मामला चाहे किसी विभाग से जुड़ा हो, खबर कोई भी हो, उसे कैसे डेवलप करना है, इसमें उन्हें गजब की महारत थी। हम सभी अलग-अलग अखबारों के लिए काम करते, लेकिन उनका दिल इतना बड़ा कि रूटीन बिट से जुड़ी महत्पूर्ण जानकारी अगर पहले उनके पास आ गई तो शेयर करने से परहेज नहीं करते। चुनाव की खबरों को कहां से और कैसे निकालना है, यह उनके बाएं हाथ का खेल होता। दो मिनट में आता हूं, बोलकर जाते और थोड़ी ही देर बाद उनके पास अगले दिन के लिए एक लीड स्टोरी होती। अपने शानदार करियर, अनुभव और सोर्स का तनिक भी अहंकार नहीं। बाइलाइन खबर पर बधाई देना भी नहीं भूलते। चाहे उनकी बिट की ही खबर क्यों न हो। ऐसे सीनियर बिरले ही मिलते हैं, इसीलिए वे हमेशा नवीन भइया ही रहे।’

वरीय पत्रकार कमला कांत पांडेय लिखते हैं- ‘नवीन कुमार मिश्रा से मेरा परिचय रांची एक्सप्रेस के उन दिनों में हुआ, जब वे पटना से धारदार रिपोर्टिंग करते थे और मैं पत्रिका समकालीन तापमान में था। उसके बाद न जाने कितनी ही बार उनके घर जाना-आना लगा रहा; दरवाजा खोलते हुए उनकी सहज मुस्कान आज भी स्मृतियों में ताजा है। समय ने करवट बदली। वे रांची एक्सप्रेस छोड़ कर दैनिक जागरण, पटना से जुड़े, तो मैं उस समय भी समकालीन तापमान से ही जुड़ा रहा। फिर भी लगाव कायम रहा। फिर वही अजीब-सा संयोग, उन्होंने जब जागरण से विदा ली, चंद ही दिनों बाद मुझे भी समकालीन तापमान से अलग होने का मौका मिला। उस कठिन घड़ी में नवीन जी से हमेशा मार्गदर्शन मिलता रहा। आज जब नवीन जी के परलोक-गमन का समाचार मिला, तो भीतर कहीं जैसे सब कुछ टूट कर बिखर गया। शब्द साथ नहीं दे रहे हैं। ज्ञानवर्धन भैया और पंकज भाई की पीड़ा को मैं दिल से महसूस करता हूँ। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह परिवार और मित्रों को यह वज्राघात सहने की शक्ति दे। नवीन जी, आपकी संवेदनशील पत्रकारिता, आपका मानवीय स्पर्श और आपकी दोस्ती, हमेशा याद आएगी। भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
