Patna Book Fair 2025 : सबसे महंगी पुस्तक ‘मैं’ का हुआ विमोचन, दाम 15 करोड़

Rajesh Thakur । Patna : पटना पुस्तक मेला 2025 (Patna Book Fair 2025) का आज रविवार को तीसरा दिन है। दुनिया का सबसे महंगा ग्रंथ पाठकों और पुस्तक प्रेमियों के बीच आकर्षण का केंद्र रहा। इस ग्रंथ की चर्चा तो पिछले दो दिनों से हो रही थी, जिस पर से आज पर्दा हट गया। आज दुनिया के सबसे महँगे ग्रंथ का विमोचन हुआ। इस ग्रंथ की कीमत 15 करोड़ रुपये है। इसका उद्घाटन होते ही गांधी मैदान में लगे पटना पुस्तक मेला में 15 करोड़ की इस पुस्तक को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। कोई इसके साथ सेल्फी लेने को बेताब दिखे तो कोई इसकी एक झलक देखने को बेचैन थे। कोई इसे छूकर अपने अरमां पूरा करना चाह रहा था। कहें तो इसकी एक झलक पाने को पूरे बिहार के लोगों में जबर्दस्त उत्साह देखने को मिला।

कार्यक्रम की शुरुआत ग्रंथ ‘मैं’ के ऊपर से आवरण हटा कर किया गया। इसका आवरण हटते ही शंखनाद से पुस्तक मेला परिसर ही नहीं, बल्कि पूरा गाँधी मैदान गूँजायमान हो उठा। इसके बाद रचनाकार रत्नेश्वर ने ग्रंथ की कुछ पंक्तियाँ सुनायी- ‘ज्योति के भीतर नीला देखा / नीला भीतर श्वेत / श्वेत बिंदु में मैं को देखा / या परमेश्वर एक…’ उन्होंने बताया कि 7 सितंबर, 2006 के रत्न मुहूर्त में उन्हें जगाया गया। उनके जागते ही वहाँ प्रकाश फैल गया और उनका त्रिनेत्र जागृत हो गया। उन्होंने 3 घंटे 24 मिनट तक अपने त्रिनेत्र से खरबों वर्षों की यात्रा की और पूरे ब्रह्म के निर्माण को देखा। इसके साथ ही उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया। उन्होंने जो देखा, उसे ही इस ग्रंथ में लिखा है। वे 21 दिनों तक स्थितप्रज्ञ की अवस्था में रहे। उन्होंने बताया कि ‘मैं’ ग्रंथ ज्ञान की परम अवस्था का आविष्कार है। उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि जिसे हम कहते हैं कि बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हो गया था। वह कौन-सी परम स्थिति है, जब किसी मनुष्य के लिए यह कहा जाता है कि उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया है। यह ग्रंथ उस रहस्य का आविष्कार करता है। इससे पहले अन्य अनेक द्रष्टा ज्ञान प्राप्त करते ही मौन हो गए थे। यह अवसर है, जब यह बताया जा रहा है कि वह ज्ञान की परम अवस्था क्या है ?

किताब की इतनी महँगी कीमत को लेकर उन्होंने बताया कि वे संसार के हरेक मनुष्य को मानने से जानने की यात्रा की ओर जाने के लिए प्रेरित करते हैं, इसलिए वे यह भी उद्घोष करते हैं कि मुझे भी मत मानो और जानने की राह पर चलने के लिए अग्रसर हो जाओ। कार्यक्रम में रत्नेश्वर की पत्नी ने उन्हें ग्रंथ सौंपा, जिसे उन्होंने क्रमशः अमित झा, जूही यादव, पुण्य पुष्कर और वीणा अमृत को दिया। कार्यक्रम का संयोजन मोनी त्रिपाठी और साहित्यकार जयप्रकाश ने किया। संचालन उत्कर्ष आनंद कर रहे थे।