PATNA (MR)। देश के ख्यातिलब्ध साहित्यकार, कवि व कहानीकार ध्रुव गुप्त रिटायर आइपीएस अफसर हैं। साहित्य की हर विधा पर उनकी जबर्दस्त पकड़ है। उनकी लेखनी का कोई जोड़ नहीं। गीत, गजल व कहानी संग्रह के रूप में कई किताबें आ गई हैं। सोशल मीडिया पर भी वे छाये रहते हैं। रविवार को उन्होंने जनकवि घाघ के बारे में विस्तृत जानकारी दी है। उनके इस लेख पर तो हजारों लाइक व कमेंट अब तक आ चुके हैं। यह आलेख उनकी स्वीकृति के बाद उनके फेसबुक से अक्षरश: लिया गया है।

ध्रुव गुप्‍त

‘बिहार और उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक लोकप्रिय जनकवियों में कवि घाघ का नाम सर्वोपरि है। मुगल सम्राट अकबर के समकालीन घाघ एक अनुभवी किसान और व्यावहारिक कृषि वैज्ञानिक थे। सदियों पहले जब टीवी या रेडियो नहीं हुआ करते थे और न सरकारी मौसम विभाग, तब किसान-कवि घाघ की कहावतें खेतिहर समाज का पथ प्रदर्शन किया करती थीं।’

उत्तम खेती मध्यम बान, नीच चाकरी, भीख निदान। घाघ के गहन कृषि-ज्ञान का परिचय उनकी कहावतों से मिलता है।

खेती को मानते थे उत्तम पेशा
खेती को उत्तम पेशा मानने वाले घाघ की यह कहावत देखिए- उत्तम खेती मध्यम बान, नीच चाकरी, भीख निदान। घाघ के गहन कृषि-ज्ञान का परिचय उनकी कहावतों से मिलता है। माना जाता है कि खेती और मौसम के बारे में कृषि वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियां झूठी साबित हो सकती हैं, घाघ की कहावतें नहीं। कन्नौज शहर के पास चौधरीसराय नामक ग्राम के रहने वाले घाघ के कृषि ज्ञान से प्रसन्न होकर सम्राट अकबर ने उन्हें सरायघाघ बसाने की आज्ञा दी थी। यह जगह कन्नौज से एक मील दक्षिण स्थित है।

उपलब्ध नहीं है कोई पुस्तक
घाघ की लिखी कोई पुस्तक तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन उनकी वाणी कहावतों के रूप में लोक में बिखरी हुई है। उनकी कहावतों को अनेक लोगों ने संग्रहित किया है। इनमें हिंदुस्तानी एकेडेमी द्वारा वर्ष 1931 में प्रकाशित रामनरेश त्रिपाठी का ‘घाघ और भड्डरी’ अत्यंत महत्वपूर्ण संकलन है।

घाघ की प्रमुख कहावतें
० दिन में गरमी रात में ओस
कहे घाघ बरखा सौ कोस !
० खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै।
० खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।
० उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो संग रहा।
० जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी।
० गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै।
० सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै।
० गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।
० वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा।
० छोड़ै खाद जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई।
० सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी
जो पचास का सौ न तुलै, देव घाघ को गारी।
० सावन मास बहे पुरवइया
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।
० रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय
कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।
० पुरुवा रोपे पूर किसान
आधा खखड़ी आधा धान।
० पूस मास दसमी अंधियारी
बदली घोर होय अधिकारी।
० सावन बदि दसमी के दिवसे
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।
० पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।
०सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।
० रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय
कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।
० भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।
० अंडा लै चीटी चढ़ै, चिड़िया नहावै धूर
कहै घाघ सुन भड्डरी वर्षा हो भरपूर ।
० दिन में बद्दर रात निबद्दर ,
बहे पूरवा झब्बर झब्बर
कहै घाघ अनहोनी होहिं
कुआं खोद के धोबी धोहिं ।
० शुक्रवार की बादरी रहे शनिचर छाय
कहा घाघ सुन घाघिनी बिन बरसे ना जाय
० काला बादल जी डरवाये
भूरा बादल पानी लावे
० तीन सिंचाई तेरह गोड़
तब देखो गन्ने का पोर

Previous articleVirtual Rally: बिहार के गांव-गांव में गूंजी अमित शाह की आवाज… नीतीश के नेतृत्व में बनेगी NDA Government
Next articleबिहार में शुरू हुई मंदिरों में पूजा तो मस्जिदों में इबादत… सीएम नीतीश ने दिए ये निर्देश

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here